(1)
शीर्षक - नज़रिया
ज़िंदगी को जीने का यही नज़रिया होना चाहिए।
जिसको जो कहना है कहे, मस्त रहना चाहिए।।
(2)
शीर्षक - बेटियाँ
पायल-सी खनकती,कलियों-सी महकती
धूप-सी छिटकती,रहती हैं बेटियाँ
चंदा की चाँदनी, वीणा की रागिनी
गंगा सी पावनी, कहलाती हैं बेटियाँ
(3)
शीर्षक - मन
मन तो बेलगाम घोड़े-सा दौड़े है
सरपट क्षितिज की ओर
अनभिज्ञ और अनजान-सा दिशाहीन
दिखता नहीं कोई छोर
©
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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