दिनांक - 17-01-2020
दिन - शुक्रवार
विधा - कविता
कभी- कभी तनहाइयाँ भी
बेहतरीन दोस्त बन जाती हैं
अनजानों की भीड़ में
कुछ अपनापन दे जाती हैं
जब बाहर का शोर
दिल बेजार करने लगता है
तब तन्हाई का आलम
दर्द पर मरहम लगता है
मदहोश दिल की धड़कन
हलचल पैदा कर देती है
कभी-कभी तन्हाई भी
हमें खुद से मिला देती है
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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