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सोमवार, 23 मार्च 2009

रिश्वत

एक दिन रिश्वत से हो गई मुलाकात
हमने कहा तुमसे करनी है कुछ बात
रिश्वत बोली जल्दी कहो टाइम नही है
लेने देने वालों की बाहर लाइन लगी है
हमने कहा आजकल बड़ी छा रही हो
हर किसी को अपने जाल में फंसा रही हो
जिधर जाओ तुम्हारी मांग है
तुझमे अटकी सबकी जान है
जरा सोचो गरीब कहाँ से लाएगा
तुम्हारे चक्कर में उसका काम रुक जायेगा
रिश्वत बोली इसके जिम्मेदार तुम जैसे लोग हैं
रिश्वत देने का जिनको रोग है
मैं तो आज हूँ कल भी रहूंगी
यहीं जियूंगी यहीं मरूंगी

मंहगाई

देखिये आजकल का जमाना
मुश्किल है घर का खर्च चलाना
बाहर जब भी जाते हैं
दाम बड़े हुए पाते हैं
मंहगाई ने निकाला हमारा दिवाला
जो हाल मेरा वही हाल तुम्हारा
ये तो है घर-घर की कहानी
दाम बदना है इसकी निशानी

मेहमान

बिन बुलाए चले आते हैं
घर का खर्च बढाते हैं
हर कोई है परेशान
घर में आए हैं मेहमान
शर्म नही इनको आती
कर जाते घर की बर्बादी
जब भी ये आते हैं
काम बड़ा जाते हैं
ख़त्म कर देते हैं सारा सामान
हाय रे मेहमान , हाय रे मेहमान

प्यारा उत्तरांचल

हरसू फैला हुआ है ,प्रकृति माँ का आँचल
दे रहा हो जैसे , बच्चों को जीवन पल-पल
पहाडियों से ऐसे , गिरते हैं सुंदर झरने
बात हमसे कोई , आए हों जैसे कहने
दूर तक ये वादियाँ , फूल-पत्तियों से भरी
उनके ऊपर ओस की , प्यारी-प्यारी बूँदें गिरीं
देख के ये दृश्य सुंदर , हो जाए मन बाबरा
काश ऐसे स्वर्ग में , होता एक घर मेरा
बढता ही जाता है , ये सौंदर्य जैसे प्रतिपल
स्वर्ग से भी सुंदर है, हमारा प्यारा उत्तरांचल

माँ ही तो है

सिमटा है जिसके आँचल में सारा संसार
दिल में है जिसके सिर्फ़ प्यार
और कौन हो सकती है वो
माँ ही तो है तडपती है जो
ख़ुद दुख सहती है
फिर भी हमें जिंदगी देती है
कितनी प्यारी कितनी भोली
प्यार और ममत्व से भर दे सबकी झोली
त्याग की ये मूर्ति
अमित है इसकी छवि
तुलना है बेकार
अनगिनत हैं माँ के उपकार

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

शुभता का प्रतीक रंगोली

मुझे बहुत गर्व होता है जब में भारतीय संस्कृति के विविध रंगों की छटा जगह-जगह देखती हूँ । शायद ये एक हिन्दुस्तानी होने का एहसास है जो मेरी तरह करोड़ों भारतीयों के दिलों में उभरता होगा । भारतवर्ष और उसकी संस्कृति इतनी विस्तृत है कि उसके अनेक पहलुओं को जानने के बाद भी उससे जुडा कोई भी तथ्य नया व अनछुआ लगता है। हमारी इसी प्राचीन संस्कृति से जुडा एक पहलु है रंगोली। रंगोली भारतीय परम्परा का एक अटूट हिस्सा है और इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है।
रंगोली कहने-सुनने में तो सिर्फ़ तीन अक्षरों का एक छोटा सा शब्द है किंतु इसका क्षेत्र बहुत विस्तृत है। क्यूंकि भारतवर्ष एक सर्व धर्म सम्मत देश है इसलिए यहाँ अलग-अलग धर्मों अथवा क्षेत्रों में रंगोली को भी अलंकार , आलेखन, अल्पना तथा एँपण आदि विविध नामों से जाना जाता है। अपने-अपने क्षेत्रों के अनुसार ही रंगोली के डिजाईन और उसमें प्रयुक्त होने वाली सामग्री में भी विविधता पाई जाती है। रंगोली बनाने के लिए चौक ,चावल का विस्वार, अबीर-गुलाल , आटा , बुरादा , फूल आदिसामाग्री का प्रयोग होता है। यही नही आधुनिक युग में तो रंगोली के लिए सांचों आदि अनेक नवीन तकनीकियों का इस्तेमाल किया जाता है । लोग रंगोली का डिजाईन बनाने के लिए कंप्यूटर कि भी सहायता लेते हैं।
प्राचीनकालीन रंगोली में ज्यादातर देवी-देवता, पशु-पक्षी, पड़-पोधे ,फूल-पट्टी आदि के चित्र दिखाई पड़ते थे । यही नही रंगोली के माध्यम से कथा चित्रण भी होता था। आजकल मॉडर्न आर्ट का चलन है। रंगोली गोलाकार , आयताकार, त्रिभुजाकार, अंडाकार , चौकौर होने के साथ-साथ विभिन्न आकारों में भी बनाई जाती है। रंगोली को किसी निश्चित खाके में नही बांधा जा सकता। इसका सीधा सम्बन्ध हमारी कल्पना से है, और कल्पना का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।
रंगोली का चलन प्राचीनकाल से ही चला आ रहा है । तब विभिन्न शुभ अवसरों पर रंगोली रखने का रिवाज था । यही परम्परा आज भी निभाई जाती है । पूरब हो या पश्चिम ,उत्तर हो या दक्खिन भारत कि चहुं दिशाओं में आपको रंगोली के विविध रंग देखने को मिलेंगे। लोग तीज-त्यौहार आदि शुभावसरों पर तथा प्रतिदिन प्रातकाल घर के मुख्य द्वार पर रंगोली रखते हैं।
कहा जाता है कि रंगोली के विविध रंग शुभता व समृद्धि का प्रतीक होते हैं, लेकिन मैं सोचती हूँ कि रंगोली रखने का कारन जो भी हो ,है तो यह भी हमारी भारतीय संस्कृति का एक अनूठा रंग। यही विविध रंग हम हिन्दुस्तानियों को गर्व का एहसास दिलाते हैं और हमीं हमारी परम्पराओं व जड़ों से जोड़कर रखते हैं।

भारतीयता की आन है रंगोली

कल्पना कि उड़ान है रंगोली
भावनाओं कि पहचान है रंगोली
बिखर जाएँ जो चाँद रंग धरा पर
तो प्रकृति का वरदान हैं रंगोली

संस्कृति कि शान है रंगोली
विचारों कि जुबान है रंगोली
अनेकता में एकता उकेरे
भारतीयता की आन है रंगोली

फागुन आयो रे

फागुन मास लगते ही होली की उमंग बदने लगती है। एक हल्का मीठा सा एहसास दिलों में दस्तक देने लगता है। भई
ऐसा हो भी क्यूँ न होली का त्यौहार ही ऐसा है। एक तरफ बच्चों में गुब्बारे ,पिचकारी ,रंग आदि की होड़ लग जाती है, वहीं दूसरी और युवा होली के बहाने आँख-मिचौली खेलने लगते हैं। बुजुर्गों का तो कहना ही क्या ? वो भी गुजियों और पकवानों का स्वाद ले अपने बचपन व जवानी के किस्से सुनाने में पीछे नही रहते। होली की उमंग हर दिल में ,उम्र को पीछे छोड़ जोर मारती है। एक सतरंगी माहौल चहूंओर नज़र आता है। शायर और लेखक तो ऐसे पलों के लिए तरसते हैं । होली का रंगीन मौसम उनकी कल्पनाओं की उड़ान को और तेज कर देता है।

पिचकारी .गुब्बारों और अबीर-गुलाल से सजी दुकाने मन के तार छेड़ जाती हैं,और गुजिया ......गुजिया की तो कल्पना मात्र ही मुंह में पानी ले आती है, फिर मिठाइयों और पकवानों से सजे पंडालों का कहना ही क्या ,इन्हे देखकर तो मन मयूर बेकाबू हो नृत्य करने लगता है । ऐसा लगता है की होली के जशन का सिलसिला यू ही चलता रहे कभी थामे ही ना और हम सभी तन-मन दोनों से प्यार के रंगों में रंग जायें । एक एइसा प्यार और विश्वास का गहरा रंग उभरे जो सारी उम्र हमें भिगोये रखे । इस रंग के आगे सभी गिले -शिकवों दुश्मनी और बुराइयों के रंग फीके पड़ जायें । बस एक ही रंग रहे जो प्यार,शंतिऔर सद्भावना का प्रतीक बन बसुधैव कुटुम्बकम को बढावा दे।

गुरुवार, 5 मार्च 2009

होली के रंग

यू तो भारत में कई त्यौहार मनाये जाते हैं परन्तु होली एक ऐसा त्यौहार है जो सभी धर्म व संप्रदाय के लोगों द्वारा उत्साह पूर्वक मनाया जाता है। होली का जिक्र आते ही आंखों के आगे एक सतरंगी माहौल छा जाता है। रंग-बिरंगे अबीर ,गुलाल ,पिचकारी .गुब्बारे हो या फिर गुजिया, मिठाई आदि पकवान ये सभी होली आते ही अपने अस्तित्व का एहसास कराते हैं।

होली का त्यौहार इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इसे प्रेम और भाईचारे का पर्व कहा जाता है। कहते हैं कि होली के दिन सभी लोग अपने पुराने गिले शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के गले लग जाते हैं । छोटा हो या बड़ा ,बूढा हो या सभी वर्ग के लोग इस त्यौहार का बर्पूर आनंद लेते हैं।

इस रंगीन त्यौहार से कई पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हैं। इनमें से भक्त प्रहलाद कि कथा सर्वविदित है। कहते हैं कि इस दिन ह्रिन्यकश्य्प कि बहिन होलिका ने भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि में जलाने कि चेष्टा की थी। ,किंतु वह प्रहलाद को तो न जला सकी अपितु स्वयं अग्नि में जलकर भस्म हो गई। यहाँ बुराई पर अच्छाई कि जीत का उदहारण देखने को मिलता है। होलिका बुराई का प्रतीक है और प्रहलाद अच्छाई का प्रतीक है। इसलिए आज देशभर में होली के दिन होलिका दहन करने की प्रथा है। होलिका की अग्नि में सभी बुराइयों को दहन कर स्वच्छ और पवित्र आचरण का आवाहन किया जाता है।

होली की प्रसिद्धि का एक कारण फिल्मों में इस त्यौहार को सुंदर दृश्यों व गानों से सजाकर दिखाया जाना भी है। कितने ही संगीतकारों और लेखकों ने होली पर्व की रंग-बिरंगी झलकियों को शब्दों और सुरों में पिरोकर इसे और भी रूमानी बना दिया है।

  • होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं
  • पिया संग खेलूँ होली फागुन आयो रे
  • होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुनादे जरा बांसुरी
  • तन रंग लो जी आज मन रंगलो ,तन रंगलो
  • रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे

ये सभी गीत हमें होली के रंग में सराबोर कर देते हैं।

होली के पर्व को कृष्ण भक्ति से भी जोड़ा जाता है। होली आते ही मथुरा ,वृन्दावन और बरसाने की रंगत देखने लायक होती है। बरसाने की लठ्ठमार होली हो या फिर मथुरा वृन्दावन में खेली जाने वाली फूलों की होली , ये आज भी कृष्ण भक्ति और रासलीला की झलक दिखाती हैं।

फागुन का महीना हो ,रंगों की बौछार हो और उत्तरांचल की होली का जिक्र न किया जाए ,हो ही नही सकता । यू उत्तराँचल छोटा सा राज्य है किंतु यहाँ होली की छटा देखते ही बनती है। फागुन का महीना लगते ही यहाँ होली की धूम शुरू हो जाती है। लोग टोली बनाकर घर-घर में जाकर होली के गीत गाते हैं। इन होली के गीतों में प्रभु राम-कृष्ण के भजन शामिल होते हैं। गाने की तर्ज के हिसाब से गीतों को खड़ी होली और बैठी होली आदि भागों में विभाजित किया जाता है। यहाँ लोग होली पर एक पेड़ पर चीर बांधते हैं और होलिका दहन के दिन उस पेड़ को जलाया जाता है।अगले दिन अबीर-गुलाल से सराबोर लोग नाचते गाते हुए घर-घर जाकर मंगल गीत गाते हैं और प्रेम व भाईचारे को बढावा देते हैं।

हांलाकि आज हमारे परिवेश में काफी बदलाव आ गया है । लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से दूर होते जा रहे हैं। फिर भी ऐसे में होली ,दिवाली आदि तीज-त्यौहार एक दिए की तरह हैं जो अंधेरे में रौशनी की किरण बन फैल रहे हैंऔर हमारी संस्कृति व सभ्यता को जीवित किए हुए हैं। ---------------

अंधेरे में रौशनी की किरण बन फैल जाते हैं,

ये त्यौहार ही हमें हमारी संस्कृति का एहसास कराते हैं ।

करीब रहकर भी जो न मिल सके अपनों से ,

होली दिवाली के पर्व उन्हें करीब लाते हैं।