आदरणीय अरुण जेटली जी को समर्पित
सूर्य-सा व्यक्तित्व तुम्हारा
राजनीति की आकाशगंगा
चमक रहा है आज ऐसे
विश्व में ज्यों लहराए तिरंगा
वटवृक्ष-से तुम बने रहे
कितने पले तुम्हारी छाया तले
सपनों को उनके उड़ान दी
तेरी अरुणिमा अब उनमें जले
जो अस्त हुए हो आज भी
तो छोड़ अपने निशां गए
बस देह ही चली गई
है अरुण की चमक यहीं
स्वरचित
दीपाली 'दिशा'
बैंगलुरू
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