अस्त हुआ जीवन का अरुण
कर्मों का सूर्य चमकता है
अरुणिमा अभी भी है बिखरी
मूल्यों का रूप दमकता है
राजनीति का वो उजियारा दीप
बी जे पी का कुशल प्रवक्ता है
कब, कहाँ किए उपकार अनेक
जनता-प्रेम में झलकता है
तन-समर्पित, जीवन भी समर्पित
ऐसा व्यक्तित्व अमर है होता
देशजीत में जो काम करे
वो अरुण नहीं अस्त होता
स्वरचित
दीपाली 'दिशा'
हिंदी अध्यापिका
बैंगलूरु
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