दिनांक - 31-03-2020
वसंत ऋतु के उत्सव जैसा
सागर में लहरें हों ऐसा
हिमालय पर्वत सा विशाल
पावन है मेरा पहला प्यार
मंदिर में हो जैसे शंखनाद
शिखरों से बहता जल प्रपात
अमृत के जैसा निष्कलुष
अविरल जैसे गंगा की धार
नौ माह गर्भ में रहा सिंचित
ममता के आँचल में सँवरा
जिसको सबसे पहले मैंने जाना
वो माँ ही है, मेरा पहला प्यार
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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