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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

फूल भी और तलवार भी

 

कोमल मन और कोमल तन

भावनाओं का पारावार हूँ मैं।

लक्ष्मी भी हूँ, दुर्गा भी हूँ

फूल भी मैं, तलवार भी मैं


निर्मल गंगा बन बहती हूँ

धूप में ठंडी, बयार हूँ मैं

घर के आँगन की तुलसी हूँ

कई रिश्तों की पतवार हूँ मैं


क्षमताओं का अपनी भान मुझे

नारी हूँ, शक्ति अवतार हूँ मैं 

नवजीवन सृजन मैं करती हूँ

सृष्टि भी रचूँ, संहार भी मैं


स्वरचित 

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

बंगलुरू कर्नाटक

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