विधा - लघुकथा
दिनांक - 21-01-20
बालकनी में रोज एक छोटी सी पर्ची पड़ी मिलती जिसमें लिखा रहता 'दीदी मुझे बचा लो' बाकी कुछ भी नहीं। आज यह पंद्रहवाँ पैगाम था जो इस पर्ची के द्वारा मुझे मिला था।
शुरू में तो मुझे लगा शायद कोई मज़ाक कर रहा है लेकिन अब लगने लगा है कि ज़रूर कोई मुसीबत में है। आज मैंने अपने चारों तरफ पैनी निगाहों से मुआयना किया ताकि कुछ तो सुराग मिल जाए। तभी मेरी नज़र सामने वाले फ्लेट की खिड़की पर पड़ी। ऐसा लगा जैसे कोई हाथ हिला रहा था। दुबारा देखा तो कोई भी नहीं था।
रात इसी उधेड़बुन में निकल गई कि आखिर कौन हो सकता है जो हाथ हिला रहा था या फिर मेरा वहम था। अगले दिन सुबह उठते ही मैं सामने वाले फ्लैट में जाने के लिए निकली। गार्ड से पूछा तो उसने बताया कि शर्मा जी का परिवार रहता है लेकिन आजकल वो विदेश गए हैं। मैंने पूछा क्या कोई चाबी दे गए हैं क्या किसी को? गार्ड ने कहा पता नहीं। आप सोसायटी के अध्यक्ष जी से पूछ लें।
मैं घर आ गयी लेकिन मन बाद बेचैन था। मेरी नज़र बार-बार वर्मा जी के फ्लैट की खिड़की पर ही जा रही थी। मैं भगवान से मना रही थी कि बस एक बार मुझे कुछ इशारा मिल जाए तो मैं कुसी की सहायता कर पाऊँगी। अपनी बालकनी में चक्कर लगाते-लगाते फिर मुझे वही हाथ और छाया नज़र आई। मैंने जल्दी से अध्यक्ष जी के घर दौड़ लगाई और उनसे शर्मा जी के घर की चाबी के लिए पूछा। उन्होंने कहा उनके पास कोई चाबी नहीं है। मैंने उन्हें सारी जानकारी दी और चलकर दरवाज़ा तोड़कर खोलने की बात कही। तब अध्यक्ष जी ने कहा कि बिना पुलिस की सहायता से हम यह नहीं कर सकते।
तब हम दोनों ने अन्य सोसायटी के सदस्यों को बुलाया तथा पुलिस की सहायता से दरवाजे को लॉक तोड़कर खुलवाया। अंदर जाकर देखा तो पता चला शर्मा जी का परिवार अपनी बहू को घर में बंद करके मरने के लिए छोड़ गए थे। उनकी बहू प्राची ने बताया कि वो उनके लिए और दहेज नहीं ला सकी इसलिए वो उसे यहीं भूखा-प्यासा बन्द करके चले गए ताकि वो अंदर ही भूख-प्यास से मर जाए।
प्राची ने बताया कि मेरे फ्लैट की बालकनी उनकी खिड़की के सामने पड़ती है तो उसने सोचा कि पर्ची के द्वारा पैगाम भेजूँगी तो कभी न कभी तो शायद कोई मेरी मदद को आ जाएगा। प्राची की जान तो बच गयी लेकिन समाज के एक सभ्य से दिखने वाले परिवार का घिनौना सच उजागर हो गया। पुलिस के अनुसार वो लोग जल्द ही गिरफ्तार कर लिए जाएँगे और उन्हें कड़ी सज़ा मिलेगी।
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी ' दिशा'
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