दिनांक - 20-01-20
देशप्रेम ही एक धर्म हो
नहीं हो कोई और निशानी
पूछे कोई कौन हो तुम
मुँह से निकले हूँ हिंदुस्तानी
शिक्षा का ना हो व्यापार
अब ना रहे कोई अज्ञानी
देश-विदेश में बजे डंका
भारत का नहीं कोई सानी
नित-नित समृद्धि बढ़ती रहे
सोए न कभी कोई भूखा
मौसम में ताल बनी रहे
न बाढ़ आए न सूखा
मुफ़्तख़ोरी और रिश्वतखोरी को
बिल्कुल न दिया जाए बढ़ावा
काम से जो भी जी चुराए
उसको न चढ़े अब चढ़ावा
आत्मरक्षा के गुर सीख कर
स्वयं सबला बन जाए नारी
घर और बाहर परचम लहराए
पड़े वो सब पर भारी
युवावर्ग को शक्ति भान हो
यूँही व्यर्थ न इसे गँवाएँ
नवसृजन और अनुसंधानों से
देश का मान वो बढाएँ
मेरे सपनों के भारत में
चहुँदिस शांति और अमन हो
प्यार की गंगा बहती रहे
पूरा विश्व वसुधैव कुटुम्ब हो
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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