काली घटाएँ सूरज को निगलने के लिए बड़ी चली आ रही थीं। तूफानी हवाएँ वृक्षों को झकझोर रही थीं। मौसम में बदलाव देखकर रेखा अतीत की स्मृतियों में खो गई और उसे वर्षों पहले बीती घटना याद आ गई। उस दिन भी ऐसा ही मौसम था जब वह आई ए एस की परीक्षा देने जा रही थी। घर से निकलते समय सब कुछ ठीक था लेकिन आधे रास्ते में पहुँचते ही मौसम ने ऐसी करवट ली कि दिन में रात जैसा माहौल हो गया। रेखा की दिल की धड़कने बढ़ती ही जा रही थी। उसको अपने सपनों के टूटने की आहट सुनाई दे रही थी। घर वालों के कितने विरोध के बाद भी उसने आई ए एस की परीक्षा की तैयारी की थी। और आज वो दिन आया था। लेकिन ये मौसम..…क्या करूँ? किससे सहायता लूँ? रेखा इसी उधेड़बुन में लगी थी कि तभी एक युवक उसके पास आया और बोला क्या आप भी आई ए एस की परीक्षा देने जा रही हैं? पहले तो वह घबरा गई फिर हिम्मत जुटाकर बोली जी हाँ। लेकिन आप....आप ये सब क्यों पूछ रहे हैं? तब उस युवक ने बड़ी शालीनता से जवाब दिया कि उसका नाम रवि है और वह भी आई ए एस की परीक्षा के लिए जा रहा है। उसके साथ कुछ और भी लोग हैं उन सबने मिलकर प्राइवेट टैक्सी वाले से परीक्षा स्थल पर छोड़ने की प्रार्थना की है। टैक्सी वाला राजी हो गया है और एक सीट खाली है। क्या तुम हमारे साथ आओगी? रवि ने पूछा। रेखा को तो ऐसा लगा जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया हो। उसने रवि को बहुत-बहुत धन्यवाद कहा और परीक्षा देने चली गई। रेखा आज भी उस अंजान फरिश्ते के अहसान को नहीं भूली है। उसी फ़रिश्ते के कारण वह एक सफ़ल आई ए एस ऑफिसर बन पाई है। आज विद्यार्थियों की सहायता करना उसके जीवन का ध्येय बन गया है।
दीपाली 'दिशा'
हिंदी अध्यापिका
दिल्ली पब्लिक स्कूल
बैंगलुरू
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