(1)
शीर्षक - रखवाले
जब तलक हैं देश के रखवाले
कौन है जो बुरी नज़र डाले
हुई है आज़माइशें भी कई बार
हरदम हुए दुश्मनों के मुँह काले
(2)
शीर्षक - दीपदान
देशहित में, मैं एक छोटा सा किरदार हूँ
अपना कर्तव्य निभाने के लिए, हरदम तैयार हूँ
देशप्रेम की लौ तो कब से जल रही है
अब दीपदान के लिए भी मैं बेकरार हूँ
(3)
*शहादत*
जो हर दिन हर पल मौत के साए में रहते हैं
ज़िंदगी के कितने सपने उन आँखों में पलते हैं
जानते हैं कि ये आँधी कभी भी उड़ा ले जाएगी
फिर भी वो वतन पर मिटने का हौंसला रखते हैं
©
दीपाली पंत तिवारी।
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