दिनांक - 18-01-20 शनिवार
विधा - कविता
पंख लगाकर गुजर जाते हैं लम्हे
आ जाता है पल जुदाई वाला
हँसी-ठिठोली जहाँ हरदम होती थी
छलकने लगा अब नयनों का प्याला
अपनों से बिछड़ने का एहसास ही
सबका दिल भारी करने लगता है
विदाई की घड़ी ज्यों आए करीब
एक तूफ़ान का मंजर दिखता है
भावनाओं के इस मंथन से छंटकर
कुछ प्यारी स्मृतियाँ निकलती हैं
जो आने वाले मिलन के लिए
विदाई को सुखमय कर देती हैं
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी
बंगलुरु
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