मातृदिवस के लिए
हाथों में लेकर सलाइयाँ
रिश्तों का ताना-बाना गढ़ती है
ये माँ है जो, प्यार के धागों से
दिलों में गर्माहट भरती है
भूल कर दिन-रात का फ़र्क
नित कुछ उधेड़बुन में रहती है
ये माँ है जो अपनी ही धुन में मग्न
इन फंदों से सपने बुनती है
शीत ऋतु की आहट को सुन
नव सृजन वो करती है
ये माँ ही है जो खुद करवटें बदल
हम सबकी खुशियाँ चुनती है
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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