कितना प्यारा, कितना न्यारा
अपना यह पंचांग है
चन्द्रमा के रूप बदलने
से तिथियों का विधान है।
तिथि, वार, नक्षत्र, योग
और करण इसके अंग हैं
इसीलिए पंचांग कहलाए
कितने इसके ढंग हैं
शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष के
बीच महीना बँटता है
इन दोनों के मध्य चंद्रमा
घटता-बढ़ता रहता है
पंद्रह दिन में घटके छिप जाए
अमावस्या हो जाती है
और बढ़े जो पन्द्रह दिनों में
पूर्णमासी बन जाती है
इसी तरह हर मास है चलता
तिथियाँ आती जाती हैं
अलग-अलग ग्रह-नक्षत्रों की
स्थितियाँ हमें बताती हैं
भारतीय संस्कृति का द्योतक
यह अपना पंचांग है
निर्माण किया है जिन गुरुओं ने
उनको हमारा प्रणाम है।
स्वरचित
©
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'