कहते हैं दुनिया गोल है; लेकिन भरोसा तभी होता है जब हमारे साथ ऐसा कोई वाकया हो जाए। पिछली बार फुटबॉल टूर्नामेंट के लिए जब ऑस्ट्रेलिया जाना हुआ तब मैदान पर भारतीय मूल की एक फैन से आमना -सामना हुआ। ये मुलाकात एक मीठी याद बनकर रह गयी। उसकी प्यारी सूरत और अल्हड़ अंदाज़ मैं आज तक नहीं भूल पाया। कभी- कभी ऐसा भी लगता था कि काश वो यहाँ भारत में ही होती तो शायद मुलाकात का सिलसिला चल पड़ता। प्रीत की ये चिंगारी कहीं मेरे दिल में सुलग रही थी। मैं जब किसी भी टूर्नामेंट में जाता तो कहीं न कहीं मेरी आँखें उसे ही खोजती। अपनी मूर्खता पर हँसी भी आती लेकिन फिर भी कहीं आस रहती क्या पता एक दिन ये सपना सच हो जाए। आज चार साल बाद जब स्टेडियम में वो मुझसे टकराई तो मुझे विश्वास हो गया कि दुनिया गोल है। साथ ही साथ अपने प्यार से मिलन की उम्मीद भी बलवती हो गई।
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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