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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

ज़िन्दगी को अख़बार न समझो


अपनी इस ज़िन्दगी को अख़बार न समझो

रिश्तों का ताना-बाना है समाचार न समझो

बन जाए न तमाशा सरेआम ज़िंदगी का

ये तो जज़्बात हैं, चर्चा ए आम न समझो


©

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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