शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

क्षणिकाएँ

 (1)


शीर्षक - नज़रिया

ज़िंदगी को जीने का यही नज़रिया होना चाहिए।

जिसको जो कहना है कहे, मस्त रहना चाहिए।।


(2)

शीर्षक - बेटियाँ

पायल-सी खनकती,कलियों-सी महकती

धूप-सी छिटकती,रहती हैं बेटियाँ

चंदा की चाँदनी, वीणा की रागिनी

गंगा सी पावनी, कहलाती हैं बेटियाँ


(3)

शीर्षक - मन

मन तो बेलगाम घोड़े-सा दौड़े है

सरपट क्षितिज की ओर 

अनभिज्ञ और अनजान-सा दिशाहीन

दिखता नहीं कोई छोर


©

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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