मुक्तक
बाँध लूँगा मैं सूरज को, शाम नहीं ढलने दूँगा
ठान ली रब से मैंने, उसकी ना चलने दूँगा
तू हौंसला रख मेरी बिटिया, ढाल हैं बाबा तेरी
खड़ा हूँ वक्त को थामकर, रेत-सा नहीं फिसलने दूँगा
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
दिशा जिन्दगी की, दिशा बन्दगी की, दिशा सपनों की, दिशा अपनों की, दिशा विचारों की, दिशा आचारों की, दिशा मंजिल को पाने की, दिशा बस चलते जाने की....
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