ईद उल जुहा
अर्थात कुर्बानी की ईद,
आती है, जब रमजान के
सत्तर दिन जाएँ बीत ।
जुड़ी है इससे हजरत
इब्राहिम की कहानी
दी थी अल्लाह के हुक्म से
अपने बेटे की कुर्बानी
खुश हुए अल्लाह उनसे,
परीक्षा में अव्वल वो आए
और फिर अल्लाह ने दिए
उनके बेटे के प्राण लौटाए
उस दिन से ही ईद उल जुहा
का पर्व ख़ूब मनाया जाता
हज़रत की कुर्बानी को
याद कर शीश नवाया जाता
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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