दिनांक - 04-08-2019
बचपन की गलियों से
जवानी की दहलीज़ तक
बुढ़ापे के सहारे में
अकेलेपन की खीज़ तक
ये दोस्ती बहुत काम आई
जैसे साथ रहे हरदम परछाई
बचपन की शैतानियों में
यौवन की नादानियों में
वृद्धावस्था की ज़दों में
बेख़याली के पलों में
सुन दोस्त तेरी ही याद आई
जैसे साथ रहे हरदम परछाई
है शुक्रिया दिल से
ए दोस्त तुमसे मिलके
मुझको हमेशा ऐसा लगा
जैसे मिले सुदामा-कृष्ण से
तेरी मित्रता सदा ही भायी
जैसे साथ रहे हरदम परछाई
स्वरचित
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें