दिशा जिन्दगी की, दिशा बन्दगी की, दिशा सपनों की, दिशा अपनों की, दिशा विचारों की, दिशा आचारों की, दिशा मंजिल को पाने की, दिशा बस चलते जाने की....
अपनी इस ज़िन्दगी को अख़बार न समझो
रिश्तों का ताना-बाना है समाचार न समझो
बन जाए न तमाशा सरेआम ज़िंदगी का
ये तो जज़्बात हैं, चर्चा ए आम न समझो
©
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें