माँ, बहन, बेटी, बहू और पत्नी
कितने ही अनगिनत नाम हैं मेरे
फिर भी सोचती हूँ कि इन सब के बीच
मैं कहाँ हूँ?
खुद को ढूँढना और होने का अहसास दिलाना
क्यों है इतना कठिन , ये जता पाना
अरे कोई तो समझे ,मैं इनसे परे जाना चाहती हूँ
आज मैं, बस 'मैं' रहना चाहती हूँ।
दीपाली पन्त तिवारी 'दिशा'
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