जो कर्मठ हैं नित, योगी हैं
न आत्ममुग्ध, न भोगी हैं
उनको ही भुला रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं।
जिनका अंदाज फ़कीरी है
जेब में बस कुछ कौड़ी हैं
उनपे उँगली उठा रहे हैं
हम हीरे लुटाकर कोयले बचा रहे हैं।
जो उन्मुक्त गगन के पंछी हैं
छल-कपट, झूठ के प्रतिद्वंदी हैं
उन्हें शत्रु बता रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं
वोटों का सही प्रहार करो
है वक्त अभी, विचार करो
किसे चुनकर बुला रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं।
जागो जनता जागो
ज़रा ठहरो, सोचो, फिर आगे बढ़ो
न आत्ममुग्ध, न भोगी हैं
उनको ही भुला रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं।
जिनका अंदाज फ़कीरी है
जेब में बस कुछ कौड़ी हैं
उनपे उँगली उठा रहे हैं
हम हीरे लुटाकर कोयले बचा रहे हैं।
जो उन्मुक्त गगन के पंछी हैं
छल-कपट, झूठ के प्रतिद्वंदी हैं
उन्हें शत्रु बता रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं
वोटों का सही प्रहार करो
है वक्त अभी, विचार करो
किसे चुनकर बुला रहे हैं
हम हीरे लुटाकर, कोयले बचा रहे हैं।
जागो जनता जागो
ज़रा ठहरो, सोचो, फिर आगे बढ़ो
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन श्रद्धांजलि - मनोहर पर्रिकर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंजी आज के माहौल के हिसाब से बहुत सही लिखा है आपने। जागने के वक्त है। सोचकर आगे बढ़ने का वक्त है। बधाई।
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