छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित अख़बार में प्रकाशित मेरी कहानी को प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
*शीर्षक- सच्ची जीत*
मयंक हमेशा ही कक्षा में अव्वल आता था। इस बात से वह इतना प्रभावित हो चुका था कि उसे लगने लगा अब कोई उसे हरा नहीं सकता। विद्यालय की अध्यापिका श्रीमती रेखा ने जब यह नोटिस किया तब निर्णय लिया कि वह मयंक को गलत दिशा में नहीं जाने देंगी।
रेखा जी हिंदी विषय पढ़ाती थीं। उन्होंने कक्षा में एक सामूहिक गतिविधि का आयोजन किया। गतिविधि के अनुसार सभी समूहों को बारी-बारी व्याकरण के दिए गए विषयों को कक्षा में पढ़ाना था। रेखा जी ने पूरी कक्षा को सात-सात बच्चों के चार समूहों में बाँट दिया। हर समूह का एक नेता भी बनाया। मयंक अपने समूह का नेता बना।
रेखा जी ने सभी विद्यार्थियों को नियम समझा दिए और कहा कि सच्ची जीत वह होती है जिसमें व्यक्तिगत उपलब्धि की बजाय अपने समूह के हर एक सदस्य को साथ लेकर जीत की ओर अग्रसर किया जाए। मयंक तो अकेला ही चलने का आदी था। उसे सबके साथ मिलकर काम करने में बड़ी उलझन हो रही थी। लेकिन नियम के अनुसार समूह के हर सदस्य की भागीदारी आवश्यक थी।
मयंक के समूह में एक लड़का था रवि जो पढ़ाई में कमज़ोर था। शुरुआत में तो मयंक बार-बार उसको धिक्कारता कि उसकी वजह से वो हार जाएगा। लेकिन जब गतिविधि के लिए कुछ ही दिन रह गए तब उसने रवि को स्वयं पढ़ाने का निर्णय लिया। लंच के समय या खेल के पीरियड में मयंक उसे लेकर अलग बैठ जाता और दिए गए विषय को समझाने की कोशिश करता। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी और रवि की पढ़ाई में रुचि बढ़ने लगी। अब वो भी मयंक की तरह होशियार हो गया। इस सब से रवि का आत्मविश्वास भी बहुत बढ़ गया। उसने मयंक का बहुत धन्यवाद किया।
पहले तो मयंक यह सब गतिविधि में अव्वल आने के लिए ही कर रहा था; परन्तु रवि के स्तर में सुधार आने से उसे स्वयं भी खुशी हो रही थी। तय तारीख पर गतिविधि का आयोजन हुआ। मयंक ने अपने समूह से रवि को ही मुख्य सदस्य के रूप में पढ़ाने का अवसर दिया। रवि का आत्मविश्वास देखते ही बनता था।
अध्यापिका रेखा जी तो मयंक का चेहरा देख रही थीं। आज उसकी आँखों में घमंड नहीं था बल्कि रवि की सफलता के लिए खुशी छलक रही थी। रेखा जी ने गतिविधि के परिणाम बताए। मयंक का समूह ही प्रथम आया था लेकिन इस बार सबसे अधिक प्रशंसा रवि को मिली। मयंक तो बार-बार रवि को गले लगाकर बधाई देते नहीं थक रहा था। रेखा जी को इस बात का सन्तोष था कि उनकी योजना काम कर गई और मयंक को सच्ची जीत का अर्थ समझ आ गया।
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