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शनिवार, 1 अगस्त 2009

ये दिन फिर याद आयेंगे

कालेज के मित्र हों या फिर बचपन के मित्र, हमें हमेशा याद आते हैं.बचपन और कालेज की गलियों से निकलकर जब हम दुनिया की भीड़ में शामिल होते है तो हमारे कई मित्र हमसे बिछड़ जाते है. लेकिन उनका अस्तित्व हमारी यादों में हमेशा बना रहता है. हमारे वो मित्र दूर होते हुए भी कभी जुदा नही होते. दोस्ती का रिश्ता एक ऐसा अटूट बंधन है जो हमारी जिन्दगी को सम्पूर्ण बनाता है. आज मित्रता दिवस पर मैं यह कविता उन सभी बिछड़े हुए मित्रों को समर्पित करती हूँ।

ये

दिन फिर याद आयेंगे
चंद पन्नों में लिख दी है दास्तां अपनी
लेकिन तुमसे इल्तजा है इतनी
राह में दोस्त कई मिल जायेंगे
लेकिन हम भी तुम्हें याद आयेंगे
जब भी मिलो किसी मोड़ पर
हँसकर मिलना पुराने शिकवे छोड़कर
चाहे हमें कम ही प्यार करना
लेकिन याद बार-बार करना
दूर ही से सही
या सपनों में ही कहीं
हम तुम्हें बुलायेंगे
हमें विश्वास है कि ये दिन
तुम्हें भी याद आयेंगे

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