मत छोड़ तू उम्मीदियों का दामन,
तो क्या हुआ जो अभी देहरी पर है अंधेरा।
सब्र कर, तोड़ दे ये उदासियों के घेरे,
उस पार, इंतजार कर रहा है, एक नया सवेरा।।
सच, बहुत फर्क पड़ता है, तेरी सोच का,
हो आशावाद का या निराशावाद का कोहरा।
एक कठपुतली की तरह नाचता है इंसान,
और बन जाता है, सोच की शतरंज का मोहरा
तो उठ, और कर कल्पना , एक सुंदर कल की,
रोशनी से भरे, उज्ज्वल, हर खुशनुमा पल की
हटा दे अपनी सोच से, उदासी का पहरा
देख तेरा इंतज़ार कर रहा है, भविष्य सुनहरा।