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सोमवार, 15 जून 2009

मुस्कान

अधखिले होठों पर फैली हल्की सी मुस्कान
दे जाती है
आँखों में चमक और चेहरे पर रौनक
हाँ यह मुस्कान ही तो है
जो डाल दे पत्थर में भी प्राण
अधखिले होठों पर फैली हल्की सी मुस्कान
कभी सोये शिशु के अधरों
पर छलक जाती तो
कभी दो दिन से भूखे भिखारी को
मिलने वाली रोटी के संग
उसके चेहरे पर खिल जाती
अधखिले होठों पर फैली हल्की सी मुस्कान
जब प्यासे को मिले पानी और
डूबते को तिनके का सहारा
तब भी बरबस होठों से
ढलक जाती है ये मुस्कान
अधखिले होठों पर फैली हल्की सी मुस्कान
कोई बिछडा़ मिले बरसों बाद
या कोई बिखरा घरोंदा हो आबाद
फिर सजती है यह चेहरे पर
और छोड़ जाती है अपने निशान
अधखिले होठों पर फैली हल्की सी मुस्कान

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