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ब्लॉग भविष्यफल

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रविवार, 25 जून 2023

अभी भी विकल्प है

जब तुम स्वयं नहीं सिखाओगे

तो कोई और सिखा जाएगा

जब तुम खुद नहीं बताओगे

तो कोई और पाठ पढ़ाएगा


यही होता आया है और आगे भी यही होगा

तुम्हारे बच्चो का भविष्य

कोई और ही गढ़ेगा


तुम्हारे पास विकल्प था कि

तुम उन्हें अपनी संस्कृति का ज्ञान कराते

तुम्हारे पास समय था कि

तुम उन्हें अपनी जड़ों का भान कराते


लेकिन तुम अपनी सुविधा-असुविधा 

के फेर में फँसे रहे

इधर मौकापरस्त लोग 

इसका ही लाभ लेते रहे


आपके घर पहुँचकर , आपसे ही 

आपकी पहचान करवा रहे हैं

आपके पूर्वज कौन हैं, क्या है? 

ये भ्रम का जाल फैला रहे हैं


जागो, समझो, सोचो 

क्यों ये हमारी संस्कृति के पीछे पड़े हैं

क्यों इसे तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं


वो अमृत में विष घोलना चाहते हैं

वो आप से आपका स्वाभिमान छीन लेना चाहते हैं


वो चाहते हैं कि आपके पास कुछ भी ऐसा न हो 

जिस पर आप गर्व कर सकें

कोशिश है उनकी कि इतिहास के पन्नों से 

मान हटाकर हीनता भर सकें


वो आदिपुरुष जैसे ही अनेक गाथाएँ सुनाएँगे

तुम्हारे आदर्शों की धज्जियाँ उड़ाएँगे


फिर कहेंगे हम तो तुम्हारा ही काम कर रहे हैं

नई पीढ़ी को इतिहास से जोड़ रहे हैं


अभी भी विकल्प है तुम्हारे पास

स्वयं जानो अपनी संस्कृति और इतिहास


सब-मिलकर बैठो, टटोलो वेद-पुराण को

जानो रामायण और गीता के ज्ञान को

पहचानो अपने कृष्ण और राम को


© स्वरचित

दीपाली 'दिशा'

बुधवार, 20 जुलाई 2022

मैं वृक्ष हूँ

 मैं वृक्ष हूँ

जड़ें मेरी ज़मीन में हैं गढ़ी

आँखें मेरी आसमान से लड़ीं

स्वाभिमान से लहलहाता हूँ मैं

दानदाता कहाता हूँ मैं


मैं वृक्ष हूँ

मेरा रोम-रोम समर्पित है

मानवता के लिए, जो भी अर्जित है

दिन-रात लुटाता हूँ मैं

कभी नहीं जताता हूँ मैं


मैं वृक्ष हूँ

रोक लेता हूँ, भूमि के कटाव को

चढ़ी नदी के बहाव को

तापमान को गिराता हूँ मैं

बरसात भी करवाता हूँ मैं


मैं वृक्ष हूँ

पथिक को देता छाया 

भूखे को कंद मूल 

पंछियों को आसरा दिलाता हूँ मैं

जीवन आसान बनाता हूँ मैं


मैं वृक्ष हूँ

तुम्हारे घर में सजीं चीजों में

खेत-खलिहान और बगीचों में

शान से लहराता हूँ मैं

कागज़-कलम बनाता हूँ मैं


मैं वृक्ष हूँ

रीढ़ हूँ मैं तुम्हारी

मेरे बिना जीना भारी

बीज़ से बीज़ बनाता हूँ मैं

एक वृक्ष तुम भी लगाओ

बस इतना ही चाहता हूँ मैं




दीपाली पंत तिवारी 'दिशा' 

बैंगलूर (कर्नाटक)

मंगलवार, 19 जुलाई 2022

यादों का मौसम

इंतजार खत्म हुआ तपती धरती का

झूम के सावन आया है

खेतों में फिर झूमती-बलखाती-लहलहाती 

फ़सलों का मौसम आया है


इधर वन में नृत्य दिखाने को

कब से मयूर था बेक़रार

उधर सावन-मनभावन के आने से

कोयल कूक रही है बारंबार


छोटे बच्चे छप-छप करते और इतराते 

रिमझिम पानी की बौछारों में

बूढ़े और जवान सैर को निकले

बचपन के गलियारों में


देखो कागज़ की नाव बना लाया है

मेरा मन भी ललचाया है

तू और मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू 

यादों का मौसम आया है









दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

बैंगलौर (कर्नाटक)

स्कूल चलें हम

घर से बाहर रखें कदम

आओ बच्चो स्कूल चले हम

स्कूल की दुनिया प्यारी है

सारे जग से न्यारी है


स्कूल तो मंदिर जैसा है

ज्ञान का दीपक जलता है

अज्ञानता को दूर भगाएँ

शिक्षक तुमको ऐसा पढ़ाएँ


छूट गए थे बस्ते तुम्हारे

भूल गए तुम सारे पहाड़े

अब नए तराने तुम गाओगे 

जब रोज स्कूल तुम जाओगे


रोको तुम न अपने कदम

आओ बच्चो स्कूल चले हम

हो गयी सारी तैयारी है

स्कूल जाने की बारी है



दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

बैंगलूर (कर्नाटक)

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

बसंत पंचमी

 दिनांक - 27-01-20

आया बसंत, आया बसंत

कण-कण में भरी उमंग

कोयल कूके अमवा पर

महका हुआ दिग-दिगंत


खिली हुई है फुलवारी

झूम रही डाली-डाली

खेतों में फूली सरसों

धरती पर छाई हरियाली


गुनगुनी धूप, स्नेहिल हवा

प्रकृति फैलाती है मादकता

प्रेमातुर होते सारे प्राणी

कामदेव का बाण चला


सरस्वती पूजा का विधान

इसीलिए कहते श्री-पंचमी

माघ शुक्ल की पंचमी

मनाते पर्व बसंत पंचमी


स्वरचित

दीपाली पंत तिवारी ' दिशा'

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

मैं

 

मैं हरदम मस्तमौला और बिंदास हूँ

जीवन की आशा और विश्वास हूँ

वक़्त पड़े तो आजमा लेना ज़िंदगी

मैं आम नहीं हूँ खास हूँ।

पहेलियाँ-पहेलियाँ


पहेलियाँ-पहेलियाँ, करें अठखेलियाँ

दिमाग की कसरत कराती हैं

ज्ञान का दीपक जलाती हैं


पहेलियाँ-पहेलियाँ, करें अठखेलियाँ

साधन अनोखा मनोरंजन का

बढ़ाती स्तर हमारी बुद्धि का


स्वरचित 

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'