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शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

प्रेमचंद - एक युग पुरूष

उपन्यास सम्राट मुँशी प्रेमचंद के 128 वें जन्मदिवस पर प्रेमचंद के जीवन और उनके साहित्य पर एक दृष्टि डाल रहे हैं इन्हीं के साहित्यिक वंशज प्रेमचंद सहजवालातीन दिन पहले प्रेमचंद की याद में कुछ लिखने के लिए जब प्रेमचंद सहजवाला से शैलेश भारतवासी ने आग्रह किया तो प्रेमचंद जी ने दिल्ली के कई पुस्तकालयों में अपने दो दिन लगाकर यह विश्लेषण भेजा। आगे की पोस्ट हिन्दयुग्म पर कहानी कलश में

गुरुवार, 30 जुलाई 2009

मेरी पहली कविता

हमारे पाठकों की पहली कविताओं की दूसरी पारी की शुरुआत पिछले अंक से हो चुकी है। ये कवितायें कुछ खास हैं, इनमें अपरिपक्वता भी नजर आयेगी, बचपना भी होगा। ये उन कविताओं में से भी नहीं होंगी जिन पर लोग वाह-वाह कर सकें, जिन पर गीत रचे जा सकें, और हो सकता है सम्मेलनों में सुनाई भी न जा सकें। लेकिन फिर भी इनका विशेष महत्व है। क्योंकि ये उन सभी कविताओं की जननी हैं। ये पहली सीढ़ी होती है। ऐसी ही २० सीढ़ियों को लेकर हम हाजिर हैं। आगे की पोस्ट पढ़ें हिन्दयुग्म पर कविता में। पहली कविता

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

रहे ना रहे हम, महका करेगें

दुनिया में कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं, जिनके जाने के बाद भी उनकी मधुर स्मृतियाँ हमें प्रेरित करती हैं। सपने देखने और उन्हें पूरा करने का हौसला देती हैं. इसी श्रेणी में एक नाम और दर्ज हुआ है, वो है शास्त्रीय संगीत की मल्लिका गंगूबाई का. गीता में कहा है कि 'शरीर मरता है आत्मा नही'. गंगूबाई शास्त्रीय संगीत की आत्मा हैं. आज वो नहीं रहीं लेकिन उनकी संगीत शैली आत्मा के रुप में हमारे बीच विराजमान है. आगे की पोस्ट पढ़ें हिन्दयुग्म पर आवाज में...
लोग उन्हें 'गाने वाली' कहकर चिढ़ाते थे. धीरे-धीरे यह उनका उपनाम हो गया.

संग हो बच्चा, दर्शन हो अच्छा

भारतवर्ष एक ऐसा देश है जहाँ हर चीज का जुगाड़ है। कालेज में दाखिला हो, राजनीति में प्रवेश, रेल में सीट हो या फिर नौकरी हो हर जगह जुगाड़ चलता है। यही नही अब भगवान के दर्शन के लिये भी जुगाड़ चल गया है। यह रीति तो हमेशा से ही रही है कि नियम बनते ही उसका तोड़ ढ़ूँढ लिया जाता है. इसका एक ताजा उदाहरण समाचार पत्र में पढ़ा तो रहा नही गया. सोचा क्यो न औरों को भी अवगत करा दूँ ताकि अन्य भी इसका लाभ उठा सकें.
आगे की पोस्ट पढिये हिन्दयुग्म पर बैठक में......संग हो बच्चा, दर्शन हो अच्छा

सोमवार, 27 जुलाई 2009

रक्षाबंधन

एक सूत्र है
प्यार, रक्षा के विश्वास का
विश्व बन्धुत्व के भाव का
सर्व मंगल कामनाओं का
अपनों की भावनाओं का


एक बंधन है
जो बढा़ये भाईचारा
कहे पूरा देश है हमारा
तोड़े धर्म-जाति के बंधन
जोड़े जन से जन का मन

एक रिश्ता है
नारी का नर से
रक्षा के वर से
स्वच्छ और पवित्र
गंगा जल जैसे

जीवन के पल

जीवन के बचे हैं थोड़े से पल
इनको सँवार ले रोना नहीं कल
इसके पलों को अभी तू सँवार ले
इन्हीं की छाँव में जिन्दगी गुजार ले
कीमती है जिन्दगी का हर एक पल
जीवन के बचे हैं थोड़े से पल
जिन्दगी का हर पल बाद में याद आता है
जब सब कुछ बरबाद हो जाता है
बरबाद होने से बचाले ये पल
जीवन के बचे हैं थोड़े से पल

गर्मी










गर्मी के मौसम में
दिन हो जाता खराब
रात को नींद नहीं आती
ना आते मुझको ख्वा़ब
दिल करे धक-धक
ना होती बरसात
सावन के महीने में भी
सूरज फेंके आग

सुनिए ऑनलाइन कवि सम्मेलन का वार्षिक अंक(जून 2009)

पूरे भारत में गरमी अपना तांडव कर रही है। हर तरफ बस एक ही पुकार है कि अल्लाह मेघ दे, पानी दे। कभी-कभी हम जैसे भावुक हृदयवालों का मन होता है कि कहीं से खुदा को खोज निकालें और उससे विनती करें कि कृपया पानी दे दें। खैर फिलहाल हम तो आपके लिए एक ऐसी बारिश लाये हैं जिसमें आप अनुभूतियों की तरह-तरह की बूँदों से भीगेंगे। जी हाँ, आप सही समझे, गर्मी की मार से अल्पकालिक ही सही, एक राहत देने के लिए, हम लेकर हाज़िर हैं जून 2009 का पॉडकास्ट कवि सम्मेलन लेकर। आगे पढ़ें/सुनें हिन्दयुग्म पर..............कविसम्मेलन

सुनिए ऑनलाइन कवि सम्मेलन जुलाई(2009) का बारिश अंक

सावन की रिमझिम फुआरें तन-मन दोनों को भिगो जाती हैं। टिप-टिप करती बारिश की बूंदे जैसे-जैसे धरती पर गिरती है वैसे-वैसे ही भावनाओं का सागर उफान पर आने लगता है । यही वो पल होता है जब मुख से निकले शब्द कलमबद्ध हो कविता का रूप लेते हैं। ये शब्द रुपी बूँदें मन की सूखी धरा को सींच जाती है और एक नई कल्पना जन्म लेती है। बारिश की ये बूंदे और क्या-क्या असर दिखाती हैं जानने के लिए के लिए पढ़ें/सुनें हिन्दयुग्म पर कविसम्मेलन.........बारिश

रविवार, 26 जुलाई 2009

बूँद और नारी

प्रतियोगिता की 15वीं कविता की रचयिता दीपाली पन्त तिवारी "दिशा" बैंगलौर में रहती हैं। जब ये बारहवीं कक्षा में पढ़ती थीं तभी से कविता लेखन का शौक लगा। खेलकूद, संगीत, नृत्य, तथा सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने की रूचि भी छुटपन से है। शादी से पूर्व शिक्षण कार्य भी किया और इलैक्ट्रोनिक मीडिया से भी जुडी रहीं। इन्होंने "रेडियो प्रसारण तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार" का कोर्स किया है। आकाशवाणी रामपुर में रेडियो कलाकार के रूप में कार्य किया है। कई रेडियो वार्ताओं में भाग लिया है। बरेली के चेनल वी एम दर्पण में न्यूज रिपोर्टर, न्यूज एंकर तथा एंकर के रूप में कार्य किया है। कई स्टोरीज में तथा विज्ञापनों में आवाज़ दी है। और आजकल इंटरनेट पर खूब सक्रिय हैं। आगे की पोस्ट हिन्दयुग्म पर ............
बूँद कभी माँ, बेटी ,बहिन तो कभी पत्नी बनती है

सैनिकों को नमन

आज हम सुकून से सोते है और अपने परिवार के बीच सुरक्षित बैठे हैं तो इसकी वजह है सैनिकों का दिन रात सीमाओं पर पहरा देना । जब-जब देश पर आक्रमण हुआ है या दुश्मनों ने घुसपैठ की है तब-तब हमारे देश के जांबाज सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान देकर हम लोगों की रक्षा की है। आज विजय दिवस के अवसर पर सभी भारतवासियों की ओर से उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि ..............
है सैनिकों तुम्हें शत-शत प्रणाम
हम सबको है तुम पर अभिमान
है सैनिकों तुम्हें शत-शत प्रणाम
तुम ही तो हो जो हमारी ढाल हो
दुश्मन के लिए हिमालय से विशाल हो
शत्रु का मिटाया तुमने नामोनिशान
है सैनिकों तुम्हें शत-शत प्रणाम
देश के लिए तुम भटके दर-बदर
घर से दूर प्रियजनों को छोड़कर
लड़ते रहे जब तक बाकीं रहे प्राण
है सैनिकों तुम्हें शत-शत प्रणाम
देश का हर वासी तुम से सबक सीखे
सबके विचार हो तुमसे महान और ऊंचे
तो शत्रु काँपेगा और भागेगा शैतान
है सैनिकों तुम्हें शत-शत प्रणाम

सुनिए आलू, भालू,चिडिया,बन्दर मामा और हाथी पर कविता

बच्चो,
हर रविवार हम आपके लिए पॉडकास्ट लेकर आते हैं। आज हम लेकर आये हैं दीपाली पन्त तिवारी "दिशा" आंटी की आवाज़ में कुछ कविताएँ। दिशा आंटी बेंगलुरू में रहती हैं। इन्हें कविताएँ लिखने का शौक है।आगे की पोस्ट पढिये हिन्दयुग्म पर .......बाल कविता

पिता

चाहें कोई भी देश हो, संस्कृति हो माता-पिता का रिश्ता सबसे बड़ा माना गया है। भारत में तो इन्हें ईश्वर का रूप माना गया है। यदि हम हिन्दी कविता जगत की कवितायें देखें तो माँ के ऊपर जितना लिखा गया है उतना पिता के ऊपर नहीं। कोई पिता कहता है, कोई पापा, अब्बा, बाबा, तो कोई बाबूजी, बाऊजी, डैडी। कितने ही नाम हैं इस रिश्ते के पर भाव सब का एक। प्यार सबमें एक। समर्पण एक। आगे की पोस्ट हिन्दयुग्म पर पढ़ें ..........काव्यपल्लवन पर दीपाली पन्त तिवारी "disha"

शनिवार, 25 जुलाई 2009

धुंआ होती जिंदगी

नशा कोई भी हो, हर हाल में नुकसानदेह है। लेकिन सिगरेट पीना एक ऐसा नशा हैं जो पीने वालों के साथ-साथ ना पीने वालों को भी अपना शिकार बनाता है. सिगरेट से निकलता धुआँ सैकड़ों लोगों की जिन्दगियों में अँधेरा कर देता है. टी.बी, फेफडों का कैंसर, मुँह का कैंसर आदि बीमारियाँ तथा प्रजनन क्षमता में कमी जैसे भयानक परिणाम सामने आते हैं. किन्तु आज समाज में "हर फिक्र को धुँए में उड़ाने" की प्रवृति जन्म ले चुकी है. आगे की पोस्ट हिंद युग्म पर "धुंआ होती जिंदगी "में पढ़ें ............

रविवार, 12 जुलाई 2009

Lessons on Life

There was a man who had four sons. He wanted his sons to learn not to judge things too quickly. So he sent them each on a quest, in turn, to go and look at a pear tree that was a great distance away.The first son went in the winter, the second in the spring, the third in summer, and the youngest son in the fall. When they had all gone and come back, he called them together to describe what they had seen.
The first son said that the tree was ugly, bent, and twisted.
The second son said no it was covered with green buds and full of promise
The third son disagreed; he said it was laden with blossoms that smelled so sweet and looked so beautiful, it was the most graceful thing he had ever seen
The last son disagreed with all of them; he said it was ripe and drooping with fruit, full of life and fulfillment
The man then explained to his sons that they were all right, because they had each seen but only one season in the tree's life. He told them that you cannot judge a tree, or a person, by only one season, and that the essence of who they are and the pleasure, joy, and love that come from that life can only be measured at the end, when all the seasons are up.If you give up when it's winter, you will miss the promise of your spring, th! e beauty of your summer, fulfillment of your fall.Moral lessons:Don't let the pain of one season destroy the joy of all the rest. Don't judge life by one difficult season. Persevere through the difficult patches and better times are sure to come some time or later

Put The Glass Down

Once A professor began his class by holding up a glass with some waterin it. He held it up for all to see; asked the students, "How much do you think this glass weighs?'50gms! ' ?....'100gms! '......'125gms'.......the students answered. 'I really don't know unless I weigh it,'said the professor, 'But, my question is: What would happen if I held itup like this for a few minutes?'. 'Nothing' the students said. 'OK what would happen if I held it up like this for an hour?' theprofessor asked.'Your arm would begin to ache' said one of the students. 'You're right, now what would happen if I held it for a day?', asked theprofessor. 'Your arm could go numb, you might have severe muscle stress& paralysis; have to go to hospital for sure!' ventured another student.All the students laughed. 'Very good' said the professor. 'But duringall this, did the weight of the glass change?' the professor said withan element of concern'. 'No' replied the students. 'Then what caused the arm ache; the musclestress?Instead What should I do?', the professor questioned them with a tingeof introspection. The students were puzzled. 'Put the glass down!' saidone of the students. 'Exactly!' said the professor. 'Life's problems are something like this.Hold it for a few minutes in your head; they seem OK.Think of them for a long time; they begin to ache. Hold it even longer;they begin to paralyze you. You will not be able to do anything'. It's important to think of the challenges (problems) in your life, butEVEN MORE IMPORTANT to 'put them down' at the end of every day beforeyou go to sleep. That way, you are not stressed, you wake up every dayfresh; strong ; can handle any issue, any challenge that comes your way!Remember to PUT THE GLASS DOWN TODAY! That's life!!!!!!!! !!!!!!

things in life (don't miss)

Three Things..........
Three things in life that, once gone, never come back
Time
Words
Opportunity
Three things in life that may never be lost
Peace
Hope
Honesty
Three things in life that are most valuable
Love
Self - Confidence
Friends
Three things in life that are never certain
Dreams
Success
Fortune
Three things that make a man/woman
Hardwork
Sincerity
Commitment
Three things in life that can destroy a man/woman
Alcohol
Pride
Anger
Three things in life that, once lost, hard to build-up
Respect
Trust
Friends
Three things in life that never fail
True Love
Determination
Belief
REMEMBER...The shortest distance between a problem and a solution is the distance between your knees and the floor. The one who kneels to the Lord, can stand up to anything.

Where To Tap

Ever heard the story of the giant ship engine that failed? The ship'sowners tried one expert after another, but none of them could figure buthow to fix the engine।Then they brought in an old man who had been fixing ships since he was ayoungster।He carried a large bag of tools with him, and when he arrived, heimmediately went to work। He inspected the engine very carefully, top tobottom।Two of the ship's owners were there, watching this man, hoping he wouldknow what to do। After looking things over, the old man reached into hisbag and pulled out a small hammer।He gently tapped something। Instantly, the engine lurched into life।He carefully put his hammer away। The engine was fixed! A week later,the owners received a bill from the old man for ten thousand dollars। "What?!" the owners exclaimed। " He hardly did anything!" So they wrote the old man a note saying, "Please send us an itemized bill
"The man sent a bill that read:
१-Tapping with a hammer ।$ 2.00
२- Knowing where to ........ $ ९९९८.00

At training program for top management

A well-known motivational speaker gathering the entire crowd'sattention, said, "The best years of my life were spent in the arms of awoman who wasn't my wife !"The crowd was shocked!He followed up by saying, "That woman was my mother!"The crowd burst into laughter and he gave his speech, which was wellreceived.About a week later, one of the top managers who had the training decidedto use that joke at his house. He tried to rehearse the joke in his head. It was a bit foggy to him.He said loudly, "The greatest years of my life were spent in the arms ofa woman who was not my wife!"Naturally, his wife was shell shocked, murmuring.After standing there for almost 10 seconds trying to recall the secondhalf of the joke, the manager finally blurted out "... and I can'tremember who she was !"As expected, he got thrashing of his life time....Moral of the story: Don't copy if you can't paste

शनिवार, 11 जुलाई 2009

Recession par Poem!

Doobte hue aadmi ne
Pull par chalte hue aadmi ko
Aawaz lagayi "bachao bachao"
Pull par chalte aadmi ne
neeche Rassi fenki aur kaha aaoo...

Nadi mein dobta hua aadmi
Rassi nahi pakad pa raha tha
Rah rah kar chillaa raha tha
Mein marna nahi chahta
Zindagi badi mehengi hai Kal hi to meri ek MNC mein naukri lagi hai

Itna sunte hi pul par chalte Aadmi ne
apni rassi kheench li Aur bhagte bhagte wo MNC gaya
Usne wahan ke HR ko bataya ki
Abhi abhi ek aadmi doobkar mar gaya hai
Aur is tarah aapki company mein Ek jagah khali kar gaya hai...

Mein berozgaar hoon muje le lo...
HR boli dost tumne der kar di,
ab se kuch der Pehle humne us aadmi ko lagaya hai
Jo usse dhakka de kar tumse pehle yahan aaya hai !!!

Massom sa chehra lekar, woh laut ayaa।
"pro-active" na hone ka, usko jhatka ayaa...
Is MNC culture ki Yahi strategy hai॥
Hum toh doobeingey hi doobeingey sanam tumhe bhi le doobeingeeeey...
Usne socha, yeh corporate duniya hai doston...

shayad iss survival of fittest ki race mey....yeh he thi vajeh, berozgaar reh jaane ki.

Gone are the days........but not the memories

Gone are the daysWhen the school reopened in June,And we settled in our new desks and benches.
Gone are the daysWhen we queued up in book depot,And got our new books and notes.
Gone are the daysWhen we wanted two Sundays and no Mondays, yetManaged to line up daily for the morning prayers.
Gone are the daysWhen we chased one another in the corridors in Intervals, And returned to the classrooms drenched in sweat.
Gone are the daysWhen we had lunch in classrooms, corridors,Playgrounds, under the trees and even in cycle sheds.
Gone are the daysWhen a single P.T. period in the week's Time Table, Was awaited more eagerly than the monsoons.
Gone are the daysOf fights but no conspiracies,Of Competitions but seldom jealousy.
Gone are the daysWhen we used to watch Live Cricket telecast,In the opposite house in Intervals and Lunch breaks.
Gone are the daysWhen few rushed at 5:30 to"Conquer" window seats in our School bus.
Gone are the daysOf Sports Day, and the annual School Day, And the one-month long preparations for them.
Gone are the daysOf the stressful Quarterly, Half Yearly and Annual Exams,And the most enjoyed holidays after them.
Gone are the daysWe learnt, we enjoyed, we played, we won, we lost, We laughed, we cried, we fought, we thought.
Gone are the daysWith so much fun in them, so many friends,So much experience, all this and more.
Gone are the daysBut not the memories, which will beLingering in our hearts for ever and ever andEver and ever and Ever.
I hope you went back to your Golden Old days..........
For a while..........as I DID!!
Didnt u????

Life Is a Short To Waste Time Hating Anyone

A story tells that two friends were walking through the desert During some point of the Journey they had an Argument, and one friend Slapped the other one In the face। The one who got slapped was hurt, but without saying anything, wrote in the sand: TODAY MY BEST FRIEND SLAPPED ME IN THE FACE ।
They kept on walking until they found an oasis, where they decided to take a bath। The one who had been slapped got stuck in the mire and started drowning, but the friend saved him. After he recovered from the near drowning, he wrote on a stone: TODAY MY BEST FRIEND SAVED MY LIFE.
The friend who had slapped and saved his best friend asked him, "After I hurt you, you wrote in the sand and now, you write on a stone, why?" The other friend replied "When someone hurts us we should write it down in sand where winds of forgiveness can erase it away। But, when someone does something good for us, we must engrave it in stone where no wind can ever erase it."
LEARN TO WRITE YOUR HURTS IN THE SAND AND TO CARVE YOUR BENEFITS IN STONE!!! They say it takes a minute to find a special person, an hour to appreciate them, a day to love them, but then an entire life to forget them।
Do not value the THINGS you have in your life. But value WHO you have in your life

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

Management Lesson

One fine day, a bus driver went to the bus garage, started his bus, and drove off along the route. No problems for the first few stops - a few people got on, a few got off, and things went generally well. At the next stop, however, a big hulk of a guy got on. Six feet eight, built like a wrestler, arms hanging down to the ground. He glared at the driver and said, "Big John doesn't pay!" and sat down at the back. Did I mention that the driver was five feet three, thin, and basically week? Well, he was. Naturally, he didn't argue with Big John, but he wasn't happy about it. The next day the same thing happened - Big John got on again, made a show of refusing to pay, and sat down. And the next day, and the next. This grated on the bus driver, who started losing sleep over the way Big John was taking advantage of him. Finally he could stand it no longer. He signed up for body building courses, karate, judo, and all that good stuff. By the end of the summer, he had become quite strong; what's more, he felt really good about himself. So on the next Monday, when Big John once again got on the bus and said, "Big John doesn't pay!" The driver stood up, glared back at the passenger, and screamed, "And why not?" With a surprised look on his face, Big John replied, "Big John has a bus pass." Management Lesson: "Be sure there is a problem in the first place before working hard to solve one

Resource Utilization

Buddha, one day, was in deep thought about the worldly activities and the ways of instilling goodness in human beings. One of his disciples approached him and said humbly " Oh my teacher ! While you are so much concerned about the world and others, why don't you look in to the welfare and needs of your own disciples also." Buddha : "OK.. Tell me how I can help you" Disciple : "Master! My attire is worn out and is beyond the decency to wear the same. Can I get a new one, please?" Buddha found the robe indeed was in a bad condition and needed replacement. He asked the store keeper to give the disciple a new robe to wear on. The disciple thanked Buddha and retired to his room. A while later, he went to his disciple's place and asked him "Is your new attire comfortable? Do you need anything more ?" Disciple : "Thank you my Master. The attire is indeed very comfortable. I need nothing more" Buddha : "Having got the new one, what did you do with your old attire?" Disciple : "I am using it as my bed spread" Buddha : "Then.. hope you have disposed off your old bed spread" Disciple : " No.. no.. master. I am using my old bedspread as my window curtain" Buddha : " What about your old Curtain?" Disciple : "Being used to handle hot utensils in the kitchen" Buddha : "Oh.. I see.. Can you tell me what did they do with the old cloth they used in Kitchen" Disciple : "They are being used to wash the floor." Buddha : " Then, the old rug being used to wash the floor...?" Disciple: " Master, since they were torn off so much, we could not find any better use, but to use as atwig in the oil lamp, which is right now lit in your study room...." Buddha smiled in contentment and left for his room. If not to this degree of utilization, can we at least attempt to find the best use of all our resources at home and in office? We need to handle wisely, all the resources earth has bestowed us with ….both natural and material so that they can be saved for the generations to come. P Save A Tree - Our responsibility to the environment. Please do not print this email/document/attachment unless you really need too.

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

बोर्ड की खामियों, माता-पिता की सोच और शिक्षकों के व्यवहार में बदलाव की जरूरत

आजकल बोर्ड का इम्तहान चर्चा क विषय बना हुआ है. हो भी क्यों ना, भई इसी से तो बच्चों के भविष्य की डोर बँधी हुयी है. इस विषय में सभी ने अपने-अपने विचार रखे. किसी ने बोर्ड परीक्षा को बच्चों पर बोझ और आत्महत्या का कारण बताया तो किसी ने कहा कि परीक्षा बच्चों को मज़बूत बनाती है साथ ही आगे आने वाली परिक्षाओं के लिये तैयार करती है.मुझे दोनों ही वर्गों की बातें अपनी-अपनी जगह ठीक लगीं. आगे की पोस्ट बैठक पर पढ़ें .....बोर्ड न होने से क्या होगा ?