LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

Click here for Myspace Layouts

ब्लॉग भविष्यफल

विजेट आपके ब्लॉग पर

Blog Widget by LinkWithin

शुक्रवार, 26 जून 2009

विद्यालय कोइ पिकनिक स्पॉट नहीं

संस्कृत में एक श्लोक है कि"सुखार्थिनों कुतो: विद्या:,विद्यार्थिनों कुतो: सुख:"अर्थात जो सुख चाहता है उसे विद्या प्राप्त नहीं होती और जो विद्या चाहता है उसे सुख नही मिलता.यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि विद्यार्थियों को कठिन परिश्रम करना पड़ता है.विद्याध्ययन के समय उन्हें अपने सभी सुखों का त्याग करना होता है तभी वह सही मायनो में बुद्धिमान बनते हैं इसके विपरीत जो सुखों में लिप्त रहते हैं उन्हें विद्या मिलना न मिलना एक समान ही होता है यानि कई बार डिग्रियाँ होते हुए भी उनमें जानकारी का अभाव होता है.
मैंने यह संदर्भ यहाँ इसलिए दिया है क्योंकि मैं यह बताना चाहती हूँ कि एक विद्यार्थी के लिये उसकी शिक्षा ही महत्वपूर्ण होती है.शिक्षा ही उसके जीवन का आधार है और विद्यालय वह प्रांगण है जहाँ उसके जीवन की नींव रखी जाती है.तो आप ही सोचिए जो स्थान आपके जीवन में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है क्या वहाँ अनुशासन का होना जरूरी नहीं है ?
आज यूनिफार्म, मोबाइल आदि सभी लोगों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं. काफी तर्क-वितर्क भी हुआ है और जारी है. मैं यहाँ यह कहना चाहती हूँ कि हर स्थान की एक गरिमा होती है. हम उसी के अनुसार वेशभूषा धारण करते हैं व आचरण करते हैं. फिर विद्यालय तो शिक्षा का मंदिर है वो कोइ पिकनिक स्पॉट तो नही जहाँ हम मनोरंजन के लिये जाते हैं. विद्यालय में बिताया हुआ हर एक पल आपकी जिन्दगी के मायने तय करता है.
प्राचीन काल में गुरुकुल परम्परा होती थी. वो इसलिये ताकि विद्यार्थी अनुशासन में रहना सीखे साथ ही ऐसे माहौल से दूर रहे जो उन्हें भ्रमित करता हो. गुरुकुल में रहकर विद्यार्थी एकाग्रचित होकर विद्याध्ययन करते थे. लेकिन आज आधुनिक युग है जहाँ सुख सुविधाओं के हजार साधन हैं. ये सभी साधन एक और हमारी सहायता करते हैं वहीं दूसरी और हमें भटकाते भी हैं. जैसेकि--आपने अपने घर में पूजा रखी है और पंडित जी पूजा करा रहे हैं लेकिन बीच-बीच में उनका मोबाइल बज रहा है. जाहिर है इससे सभी की एकाग्रता में व्यवधान पड़ेगा और आपको पंडित जी पर क्रोध भी आयेगा. ठीक इसी तरह कक्षा में बार-बार मोबाइल बजने पर व्यवधान पड़ता है. और जो पडा़ई का माहौल बना होता है वो टूट जाता है.
रही बात यूनिफार्म की तो इस विषय में सिर्फ इतना कहना चाहूँगी कि अगर विद्यालयों में यूनिफार्म होती है तो वो विद्यालय तथा विद्यार्थी दोनों की पहचान होती है. जैसे कि अगर हम कहीं पार्टी में जा रहे हैं तो उसी तरह के चमक धमक वाले कपड़े पहनते हैं उसी तरह यूनिफार्म होने से लगता है कि हम विद्यालय जा रहे हैं. लेकिन यह बात उचित नही कि केवल गर्ल्स कालेजों में यूनिफार्म होनी चाहिए. यहाँ पर बात सिर्फ विद्यालयों की होनी चाहिए चाहे वो गर्ल्स हो या बॉयज कालेज. निजी जिन्दगी में कौन क्या पहनता है या पहनती है यह सबकी अपनी मर्जी और हक़ है कि वह अपने हिसाब से चीजों को तय करे.
अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहुँगी कि हमारा व्यक्तित्व व आचरण ही हमारी पहचान होता है पहनावा नहीं. हाँ यह सच है कि आजकल के दिखावे के जमाने में पहनावे पर अधिक ध्यान दिया जाता है लेकिन अंत में आपके काम ,आपकी शिक्षा और आपके द्वारा किये गये प्रयासों से ही सिद्ध होते हैं.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें