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गुरुवार, 12 मई 2011

जैसा कर्म वैसा फल

मीकू बंदर बहुत ही शैतान बंदर था। पूरे दिन जंगल में एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर छलाँग लगाता फिरता । झूठ बोलना मीकू का शौक था और वह इतनी सफाई से झूठ बोलता था कि लोग उसकी बातों पर विश्‍वास कर लेते थे ।मीकू की माँ ने उसे कितनी बार समझाया, "मीकू !बेटा सुधर जाओ, झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है। एक दिन अपनी इस आदत के कारण तुम जरूर किसी मुसीबत में फँस जाओगे।"

पर मीकू पर इन बातों का क्या असर होता । वह तो अपनी दुनिया में ही मस्त था । दिन-प्रतिदिन उसकी लापरवाहियाँ भी बढती जा रही थीं । आजकल वह पढ़ाई-लिखाई भी ढंग से नहीं करता था। मीकू के दो दोस्त थे - चिंकू खरगोश और टीपू हिरन । चिंकू और टीपू ने भी मीकू से कहा , "देखो मीकू अगर तुम्हारा यही हाल रहा तो हम दोनों भी तुम्हारी सहायता नहीं कर पाएँगे।



एक दिन जंगल में कुछ शिकारी आए । वे सर्कस के लिए जानवर पकड़ने आए थे। जंगल में कुछ जानवर ऐसे भी थे जिनको मीकू ने बहुत परेशान किया था। वे लोग मीकू को सबक सिखाना चाहते थे । लोमड़ी लीला तो कब से मौका ढूँढ रही थी। जब उसे पता चला कि जंगल में शिकारी आए हैं तो उसने मीकू को उनके जाल में फँसाने की सोची।

लीला को पता था कि मीकू को छलाँग लगाने तथा करतब दिखाने का बड़ा शौक है। फिर क्या उसने मीकू की इसी कमजोरी का फायदा उठाने की सोची। लीला जल्दी से मीकू के पास पहुँची और बोली, " मीकू जंगल में कुछ लोग अच्छी कलाबाज़ी करने वाले जानवरों की खोज करउन्हें ईनाम दे रहे हैं। उसके बाद वे अखबार में उनका फोटो और इंटरव्यू छापेंगे। मैं तो ज्यादा उछल-कूद कर नहीं पाती। मुझे तुम्हारा ध्यान आया तो तुम्हें बताने चली आई। तुम नहीं गए वहाँ ? अरे मीकू ! तुम तो सारे जंगल में प्रसिद्ध हो जाओगे। तुम्हें बताना मेरा फर्ज था। आगे तुम्हारी मर्जी,।"

मीकू बोला, "अरे मौसी ! रुको तो। ज़रा ये तो बताती जाओ जंगल में ये सब कहाँ पर हो रहा है ?" लीला लोमड़ी मन ही मन मुस्काई और बोली, "बेटा वो बिल्लू भेड़िये के घर के पास से जो रास्ता जाता है ना वहीं उन्होंने अपना डेरा जमाया है। लेकिन मीकू एक बात का ध्यान रखना जब तुम वहाँ जाओगे तो तुम उनके डेरे के पास जाकर कुछ करतब दिखाकर लौट आना वहाँ पर रुकना नहीं। फिर देखना वो तुम्हें कैसे बुलाते हैं।" इतना कहकर लीला चली गई और अपनी चाल के सफल होने का इंतजार करने लगी।

उधर मीकू के पैर तो ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। आज वो पूरे रास्ते कलाबाज़ी का अभ्यास करता हुआ ही स्कूल पहुँचा। चिंकू और टीपू ने देखा कि मीकू बहुत खुश दिख रहा है। चिंकू बोला, "क्या बात है मीकू ! बहुत खुश दिख रहे हो ?" टीपू ने चुटकी ली और कहा, "जरूर किसी को परेशान किया होगा इसने, तभी सोच-सोच कर खुश हो रहा है।" मीकू को गुस्सा आ गया। वह पैर पटकता हुआ बोला, "बोल लो-बोल लो। जितना हँसना है हँस लो। कल जब मेरा नाम अखबार में आएगा और मैं जंगल में प्रसिद्ध हो जाऊँगा तब देखूँगा तुम दोनों को।"

चिंकू और टीपू को माजरा समझ नहीं आया। वह बोले, "गुस्सा क्यों होता है मीकू, हम तो मजाक कर रहे थे। कुछ हमें भी तो बताओ।" तब मीकू उनको ईनाम वाली बात बताता है। दोनों सुनकर हैरान रह जाते हैं और कहते हैं, "हमें तो दाल में काला नज़र आता है। इस बारे में तो किसी को कुछ भी नहीं पता।" चिंकू और टीपू मीकू को वहाँ जाने से मना करते हैं पर वह उनको डाँटकर चला जाता है।

अगले दिन मीकू माँ से सैर पर जाने का बहाना करके तैयार होकर घर से निकलता है। और सीधा लीला लोमड़ी की बताई जगह पर पहुँच जाता है। वहाँ उसे कुछ टैंट दिखाई देते हैं। कुछ लोग बाहर भी बैठे थे। मीकू ने आव देखा न ताव और करतब दिखाना शुरू कर दिया। जब सर्कस के लोगों की नजर उस पर पड़ी तो वो भौंचक्के रह गए। वो
आपस में बात करने लगे, "अरे ! अगर ऐसा बंदर हमारे सर्कस में आ जाए तो हमारी तो चाँदी ही चाँदी हो जाएगी।"उनमें से एक ने अपने दूसरे साथी को इशारा किया। उधर मीकू करतब दिखाने में मस्त था। तभी एक जाल तेजी से उड़ता हुआ मीकू के ऊपर आकर गिरा और वह जाल में फँस गया। मीकू को सँभलने का मौका भी न मिला। तभी आवाज़ सुनाई पड़ी, "शाबाश ! बहुत अच्छे।" पीछे से सर्कस का मालिक निकलकर आगे आया। "तुम सब ने तो कमाल कर दिया। अब हमें इस जंगल से निकलना चाहिए। अगर किसी को ख़बर लग गई तो हम सब जेल में होंगे।" सबने अपना समान बाँधा और मीकू तथा दूसरे जानवरों को गाड़ी में डालकर वहाँ से चल दिए। मीकू मन में
सोच रहा था, "काश ! मैंने माँ का कहना माना होता।" लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।

लीला लोमड़ी पेड़ के पीछे से सब तमाशा देख रही थी। आज उसने अपना बदला ले लिया था। मीकू को भी अपनी करनी का फल मिल गया। उसने झूठ बोल-बोलकर जंगल में बहुत लोगों को दुखी कर रखा था।

सोमवार, 9 मई 2011

हिसाब देना मुश्किल है

लाखों-करोड़ों दुआओं का
हाथों से लेती बलाओं का
हिसाब देना मुश्किल है
झूला झुलाती बाँहों का
ममता के आँचल की छाँव का
हिसाब देना मुश्किल है
निश्चल समर्पित प्यार का
अनगिनत उपकार का
हिसाब देना मुश्किल है
ममता का पलड़ा है भारी
देवों की भी पूजनीय नारी
उस करुणामयी माँ का
हिसाब देना मुश्किल है