उसकी आँखों की वो चमक हमेशा मुझे आकर्षित करती थी। कहने को वो अभी बस पाँच साल की थी लेकिन समझदारी व आत्मविश्वास गजब का। आज जब वो अपनी माँ के साथ घर आई तो हाथ में एक रंगीन कागज़ हवाईजहाज़ था और वो उसे ऐसे उड़ा रही थी जैसे कोई ऊँची उड़ान भरना चाहती हो। मैंने कहा अरे मैना आज ये हवाईजहाज़ क्यों? और मैना ने जवाब दिया मैडम जी ये मेरे सपनों की उड़ान है। आज हमने अपने सपने लिखे हैं इस पर। देखना मैडम जी हम एक-एक कर अपने सारे सपने पूरे करेंगे और फिरसे अपने सपनों के हवाईजहाज़ को उड़ाने में तल्लीन हो गयी। मैना की दृढ़ता को देखकर बस दिल से यही दुआ निकली कि हे ईश्वर यह मैना किसी पिंजरे में कैद न होकर रह जाए। इसके होंसले को टूटने मत देना।
-@दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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