आदरणीय समय ,
नमस्कार।
बताइए तो ज़रा कैसा है आपका हाल? आप तो त्रिकालदर्शी हैं। आगा-पीछा सभी जानते है। बल्कि हम सभी मनुष्य तो इस कालचक्र में ऐसे फँसे है कि इससे बाहर ही नहीं निकल पाते। कहना तो बहुत कुछ है आपसे लेकिन समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखूँ और क्या छोड़ूँ। ऐसा करती हूँ कि पिछला और अगला छोड़ देती हूँ और वर्तमान पर ही गपशप करती हूँ। इस बार आपने ये कैसी करवट बदली है कि हम सभी का हाल बेहाल कर दिया है। क्या आप इस करोना के काल को खत्म नहीं कर सकते? देखिए न कैसे जन-धन की हानि हो रही है। देश की आर्थिक, सामाजिक स्थिति डाँवाडोल हो गयी है। मज़बूर लोग और ज्यादा मज़बूर हो गए हैं। अब आप ही बताएँ कि यह सब कब तक चलेगा। मैं आपसे विनती करती हूँ कि कुछ तो हम पर कृपा कीजिए और थोड़ी अपनी गति बढ़ा दीजिए ताकि यह समय जल्दी निकल जाए और फिर से वो दिन आएँ जब सब लोग घर-बाहर बिना किसी डर के आनंद से जीवन बिता पाएँ।
हम सभी ये जानते हैं और मानते भी हैं कि समय बड़ा बलवान होता है और समय से पहले ना कुछ होता है ना हुआ है। इसलिए मैं आपसे करबद्ध प्रार्थना करती हूँ कि हमारी नादानियों को नज़रअंदाज़ करते हुए क्षमा कर दें। क्योंकि क्षमा तो बड़ों का गुण है।
हम सभी आपके बदलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। उम्मीद है आप जरूर बदलेंगे।
आपकी प्रतीक्षा में
दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'
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