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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

ख्वाहिशों के पंख


आज कुसुम का सपना पूरा हुआ था। उसकी बेटी सौम्या तरक्की के नित नए सौपान चढ़ रही थी। जो वो स्वयं न कर पाई वो सब उसने अपनी बेटी को करवाने में अपनी आधी से ज़्यादा उम्र झौंक दी। कुसुम को गर्व था कि उसकी मेहनत जाया नहीं हुई। लेकिन कहीं न कहीं उसकी आँखों में अपनी अधूरी ख्वाहिशों की मायूसी दिखाई पड़ती थी। सौम्या को अपनी माँ की इच्छाओं का भान था और उसने बचपन में ही तय कर लिया था को जब वह लायक बन जाएगी तो माँ के सपनों को पूरा करेगी। साल भर से सौम्या अपनी माँ को नर्सरी टीचर्स ट्रेनिंग और कंप्यूटर आदि की शिक्षा दिला रही थी और जैसे ही उसे लोन मिला उसने एक छोटा सा प्ले-स्कूल खोल दिया और अपनी माँ की ख्वाहिशों को पंख दे दिए। कुसुम जी तो जैसे सांतवे आसमान पर थीं। उम्र के इस पड़ाव पर एक नई उड़ान भरने के लिए तैयार।



स्वरचित

दीपाली पंत तिवारी 'दिशा'

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