श्रीकृष्ण ने अर्जुन से
गीता में कहा,
सुन पार्थ! तुझको दूँ मैं
एक सत्य बता
यह शरीर तो जन्म से ही नश्वर है
आत्मा ही है जो यहाँ शाश्वत है
नित नए रूप (शरीर) यह धारण करती है
कोटि अस्त्रों-शस्त्रों से भी यह नहीं मरती है
न सुखा सकी इसको हवा
और पानी भी न सका भिगा
आग तो इससे तौबा करती है
यह आग से भी न जलती है
गीता में कहा गया सच
आज भी अटल है
कलयुग में भी आत्माओं का
अदल-बदल है
लाचारी-भुखमरी की आत्माएँ
गरीबों-भिखमंगों के शरीरों में समाती हैं
रिश्वत-भ्रष्टाचार की आत्माएँ
नेताओं में डेरा जमाती हैं
इन आत्माओं की कभी मृत्यु नहीं होती
ये तबादला पसंद करती हैं
पाँच साल में बदलने वाली सरकार की तरह
अपना चोला बदल सकती हैं
लाचारी, भुखमरी रिश्वतखोरी और
भ्रष्टाचार की आत्माएँ बड़ी देशभक्त हैं
भारतभूमि से तो इन्हें जन्मजात प्रेम है
कभी नेता. इंजीनियर, डॉक्टर
तो कभी बेरोजगार और बीमार
इनका चोला तो यह बदलेंगी
लेकिन ये अमर आत्माएँ
भारत का दामन न छोड़ेंगी
यह एक कटु सत्य है
किंतु
सबके लिए विचारणीय तथ्य है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें