बचपन में कभी माँ ने समझाया था
कि यह केवल एक धागा नहीं है,
एक विश्वास है, जो उम्र के साथ गहरा होता जाता है
हमारा इतिहास भी तो यही बताता है
तब लगता था कि क्या कभी कोई एक रिश्ता
एक धागे का मोहताज हो सकता है
क्या एक पतला सा तार
किसी रिश्ते का आधार हो सकता है
उम्र के साथ जब हुई रिश्तों की समझ
तब समझ में आया इस धागे का महत्व
क्या गज़ब की शक्ति है इस धागे में
रानी कर्मावती ने बाँधा हुमायुँ को रक्षा के वादे में
कभी यह धागा कृष्ण की कलाई पर बँधा था
द्रोपदी का चीर हरण, इसी वचन से बचा था
जब इन्द्र ने पत्नी से यह रक्षा कवच बँधवाया था
तभी तो देवों ने मिल कर दानवों को हराया था
युग बदले पर न बदली कभी इस धागे की कहानी
अपनों के साथ परायों ने भी, इसकी कीमत जानी
धर्म और जाति से ऊपर है, यह प्रेम का धागा
सरहदों के पार से भी, निभाता आया अपना वादा
यह तो है एक मन से मन का संगम
एक नर का नारी से रक्षा का बंधन
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