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रविवार, 14 अगस्त 2011

हम कौन थे ? क्या हो गए ? और क्या होंगे अभी ?............... आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी

’आजादी’ क्या सिर्फ एक शब्द है या फिर इस शब्द में बहुत गहराई है ? कुछ ऐसे ही सवाल अक्सर उमड़ते रहते हैं । लेकिन इसका उत्तर आज में नहीं, उस अतीत के बीज में है जो आजादी के पहले की पृष्‍ठभूमि की गोद में छिपा है । देश में राजा-महाराजाओं का शासनकाल था । भारत भूमि धन-धान्य तथा प्राकृतिक संपदाओं से पूर्ण थी । भारत वर्ष को सोने की चिड़िया कहा जाता था । ऋषि-मुनियों की भूमि, सत्य-अहिंसा जैसे मानव मूल्यों की जननी भारतमाता हिमालय का मुकुट धारण किए समुद्र सिंहासन पर विराजित थी । हर तरफ यही स्वरलहरी गूँजती थी-
१-जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया

देश में हर तरफ लहलहाती फसलें ऐसी प्रतीत होती थीं जैसे भारत की धरती सोना उगलती है । चहुँ और सुख-शांति का वातावरण था । प्यार की गंगा बहती थी । हमारी देश भूमि ने केवल सोना ही नहीं उगला अनेख रत्नों को भी जन्म दिया है । इन रत्नों में गांधी, सुभाष, भगत सिंह, आजाद आदि का नाम अविस्मरणीय है । इसीलिए आज भी हमारा दिल गा उठता है-
२- मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती

जब हमारी भारतभूमि सुख और अमन की पैदावार कर रही थी । तभी देश में फिरंगियों ने अपने पैर जमाने शुरु किए और देखते ही देखते ये फिरंगी पूरे भारत पर छा गये । उन्होंने चैन और अमन की धरती पर फूट और हिंसा की खेती शुरु कर दी । भाई-भाई को आपस में लड़वा दिया । जहाँ प्यार की गंगा बहती थी वहाँ अब खून की नदियाँ बहने लगीं थी । तब देश में उमड़ा इंकलाब का सैलाब । यह सैलाब ऐसा था कि भारतवासियों का रोम-रोम देशभक्‍ति की आग से जल उठा । जनता अपने प्राणों की बलि देकर भी भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए तड़प उठी। हर भारत वासी यही कहता----
३-ए वतन, ए वतन मुझको तेरी कसम

देश का बच्चा-बच्चा आजादी के हवन कुंड में अपनी आहुति देने के लिए तैयार था। यही नहीं भगत सिंह जैसे आजादी के परवाने तो आजादी को अपनी दुल्हन कहते थे । वो कहते थे कि -"माँ तू मेरा बसंती चोला रंग दे मैं आजादी की दुल्हन को ब्याह कर लाऊँगा । जब भगतसिंह., सुखदेव और राजगुरु को फाँसी दी गई तब भी उनके मुख से यही शब्द निकले थे-
४-मेरा रंग दे बसंती चोला

हमारे देश के स्वतंत्रता सेनानियों तथा आजादी के परवानों ने देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए तब जाकर हमें यह आजादी नसीब हुई । उन्होंने तो आजाद भारत की झलक न देखी पर हमें वो आजादी की साँसे दे गए । एक उम्मीद और एक आस लिए जाते-जाते सिर्फ यही कह गये " कर चले हम फिदा जान और तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों"
५-कर चले हम फिदा जान

हमारे देश के वीर जवानों ने हमेशा अपना कर्तव्य निभाया है और आगे भी निभाते रहेंगे । चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम हो या फिर कारगिल युद्ध वे कभी भी अपने फर्ज से नहीं डिगे । उनके मन में हमेशा यही डर था कि कहीं आने वाले कल में कोई उन्हें इल्जाम न दे ।
६-देखो वीर जवानों अपने खून पे ये इल्जाम न आये

खैर हमारे वीर जवानों और शहीदों ने तो अपना फर्ज़ बखूबी निभाया है। लेकिन प्रश्न तो यह उठता है कि हमने क्या किया ? आजादी के चौंसठ सालों में हम क्या से क्या हो गए । क्या हमारी आजादी इतनी सस्ती है ? क्या हमारे वीर-जवानों का खून इतना सस्ता है ? कौन है जो आगे आए और कहे "नहीं, हम अपनी आजादी को ऐसे ही मिटा नहीं सकते ।
७-अपनी आजादी को हम हरगिज़ मिटा सकते नहीं

दोस्तों आज जो देश में हालात हैं, वह फिर से उन्हीं पुराने दिनों की याद दिलाते हैं। आपसी मतभेद, आतंकवाद, जातिवाद आदि अनेक दानव भारतभूमि को फिर से निगलने को तैयार खड़े हैं । यदि यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं जब एक बार हमारा देश फिर से विदेशी ताकतों का गुलाम बन जाएगा और फिर से जिन्दगी मौत के समान हो जाएगी । इसलिए सोचो और समझो-
८-ज़िन्दगी मौत न बन जाए सँभालों यारो

कहा गया है "गर तुझे तेरी गलती का एहसास है, फिर तेरे सुधरने की आस है" यदि हम सब भी अपनी गलतियों का एहसास कर स्वयं को सुधारेंगे तो एक अच्छे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं । यदि हमें देश और आजादी का महत्व जानना है तो उन शहीदों की कुर्बानियों को याद करो जिन्होंने सरहद पर जान गँवाई और हमें आजाद भारत दे गए-
९-ए मेरे वतन के लोगों ज़रा आँख में भर लो पानी

यदि हम सब सच्चे हिन्दुस्तानी हैं तो आइए एक वादा करिए और कसम उठाइए कि "आज से जो भी करेंगे देश के लिए करेंगे चाहे जान भी चले जाए पीछे नहीं हटेंगे"-
९-हर करम अपना करेंगे, ए वतन तेरे लिए


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