कब तुमने मेरा हाथ थामा
पता ही न चला
कब तुम मेरे अज़ीज बन गये
पता ही न चला
आहिस्ता से रगों में बहते लहु की तरह
कब धड़कनों में उतर गये 
पता ही न चला
बचपन की गलियों से गुजरते हुए
यौवन की दहलीज़ तक
कब रिश्ते गहराते चले गए
पता ही न चला
आज जब दूर हो तो 
इस गहराई की हुई है भनक
हर रिश्ते की खुशबू से 
आती है बस तेरी ही महक
कब तेरा दामन छूटा 
पता ही न चला
कब तू मुझसे रूठा
पता ही न चला
आ..एक बार आजा, 
देती हैं सदाएँ, मेरी धड़कनें तुझको
अधूरी हूँ तेरे बिना,
आज यह एहसास है मुझको
भूल कर सब, ढूँढें एक मौका नया
आ फिर शुरु करें दोस्ती का सिलसिला

 
 

 


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