 
जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना
 
जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है वो पावत है
यह बात कोई झूठी नहीं
एकदम सच्ची कहावत है
 
इतना खो चुके हैं कि अब
खोने को कुछ बाकी नहीं
इतना रो चुके हैं कि अब
आँखों में कोई आँसू ही नहीं
यह लौ लगी है मुश्किल से
इस लौ को अब जलाके रखना
जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना
 
क्या सोचा था क्या पाया हमने
आजादी का मोल भुलाया हमने
भ्रष्टाचार के रावण को
खुद ही तो खून पिलाया हमने
 
बहुत हो चुका अब और नहीं
हम खुदगर्ज़ थे कमजोर नहीं
जो जाग उठे हैं तंद्रा से
तो इंकलाब की भोर हुई
अब डटे रहो, न थक जाना
सबका होंसला बनाके रखना
 
जल उठी हैं चिंगारियाँ
शोलों को हवा देते रहना
बहुत रह चुके हम नींद में
सोयों को अब जगाते रहना

 
 

 


कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें