एक था कालू भालू
था बड़ा ही चालू
शैतानी करता था
सबसे वो लड़ता था
तब जानवरों ने ठानी
उसे याद दिलाएँ नानी
ढूँढ रहे थे मौका
कब मिलके मारें चौका
जल्दी ही वो दिन आया
शिकारी ने जाल बिछाया
कालू फँस गया उसमें
कुछ नहीं था उसके वश में
उसने आवाज़ लगाई
कोई जान बचाओ भाई
चिंकू चूहा बोला
तुमने कब किसको छोड़ा
क्यों जान बचाऊँ तुम्हारी
नहीं तुमसे कोई यारी
मैं तो चला अपने रस्ते
तुम मरना हँसते-हँसते
कालू ने पकड़े कान
मेरे भाई बचाओ जान
मुझको है पछतावा
अब मान भी जाओ राजा
चिंकू थोड़ा मुस्काया
कालू के पास में आया
जाल को उसने कुतरा
टल गया सारा खतरा
कालू ने मन में ठानी
अब करूँ नहीं मनमानी
खाता हूँ कसम में अब से
मिलकर रहूँगा सबसे
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