रविवार, 26 अगस्त 2012

कालू भालू

एक था कालू भालू

था बड़ा ही चालू

शैतानी करता था

सबसे वो लड़ता था

तब जानवरों ने ठानी

उसे याद दिलाएँ नानी

ढूँढ रहे थे मौका

कब मिलके मारें चौका

जल्दी ही वो दिन आया

शिकारी ने जाल बिछाया

कालू फँस गया उसमें

कुछ नहीं था उसके वश में

उसने आवाज़ लगाई

कोई जान बचाओ भाई

चिंकू चूहा बोला

तुमने कब किसको छोड़ा

क्यों जान बचाऊँ तुम्हारी

नहीं तुमसे कोई यारी

मैं तो चला अपने रस्ते

तुम मरना हँसते-हँसते

कालू ने पकड़े कान

मेरे भाई बचाओ जान

मुझको है पछतावा

अब मान भी जाओ राजा

चिंकू थोड़ा मुस्काया

कालू के पास में आया

जाल को उसने कुतरा

टल गया सारा खतरा

कालू ने मन में ठानी

अब करूँ नहीं मनमानी

खाता हूँ कसम में अब से

मिलकर रहूँगा सबसे

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