कृष्णपक्ष की अष्टमी के चंद्र की तरह एक पैर पर खड़े होकर, एक पैर टेढ़ा रखकर, शरीर को कमनीय मोड़ देकर इस मुरलीधर ने जिस दिन संसार में प्रथम बार प्राण फूंका, वह दिन इतिहास में अमर हो गया। बादलों की गड़गड़ाहट हो रही है, बिजली कड़कती है, मूसलधार वर्षा टूट पड़ रही है, ऐसे समय श्री कृष्ण का जन्म हुआ है। कहते हैं कि जब जीवन में अंधकार फैलता है, निराशा का वातावरण छा जाता है, आपत्ति की वर्षा टूट पड़ती है, दुःख-दैन्य के काले बादल धमकी देते हुए गड़गड़ाहट करते हैं, अनाचार चरम पर पहुँच जाता है तब कोइ एक अवतार अवतरित होता है. भगवान श्री कृष्ण ने समस्त दु:खों का नाश करने तथा पृथ्वी को संकट मुक्त करने के लिये जन्म लिया। यूँ तो भारत में अनंत अवतार हुए हैं और भारत में नररत्नों की परंपरा भी है। एक-एक गुण के लिए, एक-एक तत्व के लिए, एक-एक ध्येय के लिए कई जीवन इस देश में लोगों ने अर्पण किए हैं, ऐसे भारत देश के रत्नों की शोभा बढ़ाने वाले कौस्तुभमणि श्री कृष्ण! हैं. भगवान श्री कृष्ण में यशस्वी , विजयी योद्धा, धर्मसाम्राज्य के उत्पादक, मानव विकास की परंपरा का नैतिक मूल्य समझाने वाले उद्गाता, धर्म के महान प्रवचनकार, भक्तवत्सल और ज्ञानियों तथा जिज्ञासुओं की जिज्ञासा पूरी करने वाले जगद्गुरु आदि सभी गुण निहित हैं उनका व्यक्तित्व आकर्षक तथा प्रेरणा दायक है।
मोहरात्रि: श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनि बजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है ।
कथा: द्वापर युग में पृथ्वी पर राक्षसो के अत्याचार बढने लगे पृथ्वी गाय का रूप धारण कर अपनी कथा सुनाने के लिए तथा उदार के लिए ब्रह्याजी के पास गई। ब्रह्याजी सब देवताओ को साथ लेकर पृथ्वी को विष्णु के पास क्षीर सागर ले गए। उस समय भगवान विष्णु अन्नत शैया पर शयन कर रहे थे। स्तुति करने पर भगवान की निद्रा भंग हो गई भगवान ने ब्रह्या एवं सब देवताओ को देखकर उनके आने का कारण पूछा तो पृथ्वी बोली-भगवान मैं पाप के बोझ से दबी जा रही हूँ। मेरा उद्धार किजिए। यह सुनकर विष्णु बोले - मैं ब्रज मण्डल में वासुदेव की पत्नी देवकी गर्भ से जन्म लूँगा। तुम सब देवतागण ब्रज भूमि में जाकर यादव वंश में अपना शरीर धारण कर लो। इतना कहकर अन्तर्ध्यान हो गए । इसके पश्चात् देवता ब्रज मण्डल में आकर यदुकुल में नन्द यशोदा तथा गोप गोपियो के रूप में पैदा हुए । द्वापर युग के अन्त में मथुरा में उग्रसेन राजा राज्य करता था। उग्रसेन के पुत्र का नाम कंस था कंस ने उग्रसेन को बलपूर्वक सिंहासन से उतारकर जेल में डाल दिया और स्वंय राजा बन गया कंस की बहन देवकी का विवाह यादव कुल में वासुदेव के साथ निशिचत हो गया । जब कंस देवकी को विदा करने के लिए रथ के साथ जा रहा था तो आकाशवाणी हुई कि ”हे कंस! जिस देवकी को तु बडे प्रेम से विदा करने कर रहा है उसका आँठवा पुत्र तेरा संहार करेगा। आकाशवाणी की बात सुनकर कंस क्रोध से भरकर देवकी को मारने को तैयार हो गया। उसने सोचा- ने देवकी होगी न उसका पुत्र होगा । वासुदेव जी ने कंस को समझाया कि तुम्हे देवकी से तो कोई भय नही है देवकी की आठवी सन्तान में तुम्हे सौप दूँगा। तुम्हारे समझ मे जो आये उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना कंस ने वासुदेव जी की बात स्वीकार कर ली और वासुदेव-देवकी को कारागार में बन्द कर दिया । तत्काल नारदजी वहाँ पहुँचे और कंस से बोले कि यह कैसे पता चला कि आठवाँ गर्भ कौन सा होगा गिनती प्रथम से या अन्तिम गर्भ से शुरू होगा कंस ने नादरजी के परामर्श पर देवकी के गर्भ से उत्पन्न होने वाले समस्त बालको को मारने का निश्चय कर लिया । इस प्रकार एक-एक करके कंस ने देवकी के सात बालको को निर्दयता पूर्वक मार डाला । भाद्र पद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ उनके जन्म लेते ही जेल ही कोठरी में प्रकाश फैल गया। वासुदेव देवकी के सामने शंख, चक्र, गदा, एव पदमधारी चतुर्भुज भगवान ने अपना रूप प्रकट कर कहा,”अब मै बालक का रूप धारण करता हूँ तुम मुझे तत्काल गोकुल में नन्द के यहाँ पहुँचा दो और उनकी अभी-अभी जन्मी कन्या को लाकर कंस को सौप दो । तत्काल वासुदेव जी की हथकडियाँ खुल गई । दरवाजे अपने आप खुल गये पहरेदार सो गये वासुदेव कृष्ण को सूप में रखकर गोकुल को चल दिए रास्ते में यमुना श्रीकृष्ण के चरणो को स्पर्श करने के लिए बढने लगी भगवान ने अपने पैर लटका दिए चरण छूने के बाद यमुना घट गई वासुदेव यमुना पार कर गोकुल में नन्द के यहाँ गये बालक कृष्ण को यशोदाजी की बगल मे सुंलाकर कन्या को लेकर वापस कंस के कारागार में आ गए। जेल के दरवाजे पूर्ववत् बन्द हो गये। वासुदेव जी के हाथो में हथकडियाँ पड गई, पहरेदारजाग गये कन्या के रोने पर कंस को खबर दी गई। कंस ने कारागार मे जाकर कन्या को लेकर पत्थर पर पटक कर मारना चाहा परन्तु वह कंस के हाथो से छूटकर आकाश में उड गई और देवी का रूप धारण का बोली ,”हे कंस! मुझे मारने से क्या लाभ? तेरा शत्रु तो गोकुल में पहुच चुका है। यह दृश्य देखकर कंस हतप्रभ और व्याकुल हो गया । कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए अनेक दैत्य भेजे श्रीकृष्ण ने अपनी आलौलिक माया से सारे दैत्यो को मार डाला। बडे होने पर कंस को मारकर उग्रसेन को राजगद्दी पर बैठाया । श्रीकृष्ण की पुण्य तिथि को तभी से जन्माष्टमी के रूप में सारे देश में बडे हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।
पुराणानुसार: भविष्यपुराणके जन्माष्टमीव्रत-माहात्म्यमें यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराजके अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोगों द्वारा जन्माष्टमी का व्रत करने से कल्याण होता है. समस्त कष्टों का नाश होता है।
कृष्णमय हो जाता है समूचा ब्रज: कृष्ण के जन्म पर ब्रज भूमि की बात न हो तो सारी बातें अधूरी हैं. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर बृज का हर घर मंदिर बन जाता है और बृज का कोना-कोना कृष्णमय हो उठता है। कृष्ण के प्रेम में रंगे बृजवासी इस अवसर पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहते हैं। सारा विश्व मनमोहन की अनुपम छवि को निहारने के लिए लालायित रहता है। बृज के सभी मंदिरों में जन्माष्टमी, बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है.वृन्दावन के राधारमण मंदिर, राधा दामोदर मंदिर एवं शाहजी मंदिर में जन्माष्टमी दिन में ही मनाई जाती है। वृन्दावन के लोग इन मंदिरों में से किसी का भी चरणामृत ग्रहण कर जन्माष्टमी व्रत के नियम का पालन करते हैं।
कृष्ण में सभी गुणों का समावेश मिलता है. कृष्ण का अवतार सभी दृष्टि से पूर्णावतार हैं। उनके जीवन में कहीं भी उंगली उठाने, न्यूनता जैसा स्थान नहीं है। एक भी स्थान ऐसा नहीं है कि जहां कमी महसूस हो। आध्यात्मिक, नैतिक या दूसरी किसी भी दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि कृष्ण जैसा समाज उद्धारक दूसरा कोई पैदा हुआ ही नहीं है। कृष्ण की तुलना में खड़ा रह सके ऐसा राजनीतिज्ञ इस जगत् में कहीं भी देखने को नहीं मिलता।अध्यात्म तो भगवान श्री कृष्ण की वैशिष्ठ्य है! कृष्ण ने निरपेक्ष रहकर रात-दिन संस्कृति के लिए कार्य किया। रात-दिन राजनीति में लीन होने वाला और कोई भी निरपेक्ष रह ही नहीं सकता है। केवल कृष्ण ही एक अपवाद हैं .उन्होंने धर्म और तत्वज्ञान के आधार पर राजसत्ता का नियंत्रण बखूबी किया तथा समाज को संदेश दिया कि अधर्मी चाहे सगा रिश्तेदार ही क्यों ना हो, उसका नाश करना हमारा कर्तव्य है. लोभी और धूर्त हमारे स्वजन कैसे हो सकते हैं. जो भी धर्म और न्याय के खिलाफ हो उसका साथ छोड़कर धर्म के मार्ग पर चलना ही समझदारी है और हमारा कर्तव्य भी है. कृष्ण की यह विचारधारा आज भी "भगवत गीता" के रूप में एक धरोहर है. भगवत गीता में निहित सद्ग्यान हमें कदम-कदम पर राह दिखाता है और अवनति के मार्ग से हटा उन्नति की और अग्रसर करता है.
Click here for Myspace Layouts
ब्लॉग भविष्यफल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अच्छी पोस्ट... कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट कृष्ण जन्माष्टमी और स्वतँत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामना जै हिन्द्
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .
अच्छा पोस्ट। शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com