यह सच है कि जिस तरह से मातृभूमि सबको प्रिय है उसी तरह मातृभाषा के प्रति भी लगाव होना लाज़मी है.लेकिन हर चीज की एक सीमा होनी चाहिये.’अति सर्वत्र वर्जयेत’ यानि कहीं पर भी अति नहीं होनी चाहिये. भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है जहाँ विभिन्न धर्म-जातियाँ तथा भाषायें पायी जाती हैं. यहाँ के लोग भी किसी सीमा में बँधे हुए नहीं हैं. सभी प्रान्तों के लोग अन्य प्रान्तों में बसे हुए हैं. ऐसे में अगर कोइ प्रान्त यह फैसला करे कि हमारे यहाँ सिर्फ हमारे ही प्रान्त की भाषा में स्कूलों मे शिक्षा दी जायेगी तो सरासर गलत होगा. शिक्षा पर सभी का अधिकार है और ऐसे में सिर्फ भाषा का दवाब बनाकर आप लोगों को शिक्षा से वंचित नहीं कर सकते.
हाल ही में कर्नाटक सरकार ने प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा का माध्यम कन्नड़ भाषा होना अनिवार्य किया है इसे कोर्ट ने भी गलत ठहराया है. क्या अपनी भाषा के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने का सिर्फ यही तरीका है. जो लोग अन्य प्रान्तों से स्थानान्तरण कर आ बसे हैं वह केवल कन्नड़ भाषा माध्यम होने से अपने बच्चों को बीच सत्र में कहाँ दाखिला दिलायेगें. पूरे देश में या विदेशों में एक ही भाषा तो नहीं चलती है. सभी जगह अंग्रेजी एक माध्यम का कार्य करती है. अगर कोइ व्यक्ति सिर्फ कन्नड़, मलयालम, उर्दू या हिन्दी भाषा तक सीमित रह जायेगा तो वह अपने प्रान्त से निकलकर अन्य प्रान्तों में कैसे काम करेगा.
पिछले वर्ष केरल सरकार द्वारा मलयालम भाषा शिक्षा का माध्यम बनायी गयी उसका नतीजा यह निकला कि इस वर्ष केरल के प्राइमरी विद्यालयों में २.५ लाख दाखिले कम हुए. ज्यादातर माता-पिताओं ने अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा दिलाने के लिये अन्य प्रान्तों का रुख किया. शिक्षा का माध्यम चुनना शिक्षा प्राप्त करने वाले का अधिकार होना चाहिये न कि सरकार का. ऐसा फैसला किस काम का जिससे बच्चों के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग जाये.
भाषा के प्रचार-प्रसार के और भी तरीके हैं. अगर सरकार अपने प्रान्त की भाषा को बढा़वा ही देना चाहती है तो वह उस भाषा को अनिवार्य विषय के तौर पर रख सकती है. इसके अलावा भाषा से जुडी साहित्यिक प्रतियोगिताओं,सेमिनार आदि का आयोजन भी इस दिशा मे अच्छा प्रयास होगा. इससे साहित्य को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ लोगों में भाषा के प्रति लगाव भी बढ़ेगा.
Click here for Myspace Layouts
ब्लॉग भविष्यफल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
आपने सामयिक समस्या उठाई है.....सरकार इस ओर ध्यान नही दे रही...इस समस्या का समाधान सभी को मिलजुल कर हल करनी चाहिए...
जवाब देंहटाएंसबसे बड़ा राष्ट्रवाद और उसके बाद मातृभाषा है . प्रांतीय भाषावाद के नाम पर देश में जो जहर फैलाया जा रहा है वह देशहित में उचित नहीं है .
जवाब देंहटाएंसामयिक समस्या का अच्छा विश्लेषण किया है आपने
जवाब देंहटाएंvery important issue with thoughtful approach.
जवाब देंहटाएंnice post.
http://www.ashokvichar.blogspot.com
Sahi baat hai aise me...hum sirf ek bhasha tk he semit reh jaege aur iska natija ya bhi ho skta hai ki log sarkar ka vidrooh kare aur desh ki pragati par bi asar pad skta hai
जवाब देंहटाएंSahi baat hai aise me...hum sirf ek bhasha tk he semit reh jaege aur iska natija ya bhi ho skta hai ki log sarkar ka vidrooh kare aur desh ki pragati par bi asar pad skta hai
जवाब देंहटाएं