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सोमवार, 3 अगस्त 2009

साहित्य रत्न कवि मैथिलीशरण गुप्त

कवि मैथिलीशरण गुप्त के जन्म दिवस के अवसर पर
(३अगस्त-१८८५-१९६४)
भारतभूमि ने ऐसे-ऐसे रत्नों को जन्म दिया है जिनका डंका विश्व भर में बजता है. यह हमारा सौभाग्य है कि भारतवर्ष हमारी जन्मभूमि है. कला हो या साहित्य हर क्षेत्र में भारत अग्रणीय है. भारतभूमि के एक रत्न कवि मैथिलीशरण गुप्त जी का नाम उन श्रेष्ठ साहित्यकारों मे जाना जाता है जिन्होनें हिन्दी साहित्य को नयी ऊँचाईयां प्रदान की. गद्य हो या पद्य साहित्य के दोनों ही क्षेत्रों में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है. इसका उदाहरण यह है कि मध्य प्रदेश संस्कृति राज्य मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने कहा है कि राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की जयंती प्रदेश में प्रतिवर्ष "तीन अगस्त" को "कवि दिवस" के रूप में मनायी जायेगी। यह निर्णय राज्य शासन ने लिया है। इसका उद्देश्य युवा पीढ़ी को भारतीय साहित्य के स्वर्णिम इतिहास से भली-भांति अवगत कराना है और इसके लिये संस्कृति विभाग द्वारा प्रदेश में भारतीय कवियों पर केन्द्रित करते हुए अनेक आयोजन करेगा।
महान साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त जी के जन्म के विषय में कहा जाता है कि इनका जन्म ३ अगस्त सन १८४६ ई. में पिता सेठ रामचरण कनकने और माता कौशिल्या बाई की तीसरी संतान के रुप में चिरगांव, झांसी में हुआ। बाल्यावस्था में खेलकूद में ध्यान होने से पढ़ाई छूट गयी और इन्होंने घर पर ही रहकर हिन्दी, बांग्ला तथा संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया. मुंशी अजमेरी से मार्गदर्शन प्राप्त होने के बाद इन्होंने १२ वर्ष की आयु से ब्रजभाषा में कविता लिखना आरम्भ कर दिया था. मैथिलीशरण गुप्त जी की रचनाओं में खडी़ बोली की अधिकता देखने को मिलती है. जब इनका सम्पर्क आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से हुआ तो ये द्विवेदी जी की पत्रिका "सरस्वती" के लिये खडी़ बोली में लिखने लगे. मैथिलीशरण जी का प्रथम काव्य संग्रह "रंग में भंग प्रकाशित हुआ फित जयद्रथ वध का प्रकाशन हुआ. गुप्त जी ने बंगाली के काव्य संग्रह "मेघनाथ वध" तथा "ब्रजांगना" का अनुवाद भी किया. देशप्रेम की भावना गुप्त जी में कूट-कूट कर भरी थी. इसका प्रमाण राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत उनकी रचना "भारत भारती"है.
मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रमुख रचनाओं में महाकाव्य-साकेत, खंडकाव्य-जयद्रथ वध, भारत भारती, पचंवटी, यशोधरा,नहुष, अंजलि और अर्घ्य, किसान, कुणाल गीत भारत झंकार. द्वापर, पृथ्वीपुत्र, मेघनाथ वध और स्वदेश गीत है. अगर उनके द्वारा अनुवाद की गयी रचनाओं की बात की जाय तो इनमें वीरांगना, स्वप्नवासवदत्ता, रत्नावली, रूबाइयात उमर खय्याम आदि हैं.मैथिलीशरण गुप्त जी ने अपना पूरा जीवन साहिएय की सेवा में अर्पित कर दिया. उन्हें इसके लिये ’पद्मभूषण’ से सम्मानित किया गया.वे मानववादी, नैतिक और सांस्कृतिक काव्यधारा के विशिष्ट कवि थे. डाँ. नगेन्द्र के अनुसार वे सच्चे राष्ट्रकवि थे. दिनकर जी का कहना था कि गुप्त जी के काव्य के भीतर भारत की प्रचीन संस्कृति एक बार फिर तरुणावस्था को प्राप्त हुइ है.
गुप्त जी के काव्य में मानव जीवन की प्राय: सभी अवस्थाओं एवं परिस्थितियों का वर्णन हुआ है. अत: इनकी रचनाओं में सभी रसों का स्वाद मिलता है. प्रबन्ध काव्य गुप्त जी की विशिष्टता थे उन्हें इनमें सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई है. भारत के राष्ट्रीय उत्थान में उनकी रचना भारत भारती का अमिट योगदान है. गुप्त जी की रचनाओं में संयुक्त परिवार केन्द्र रहा है. यह उनकी रचनाओं की श्रेष्ठता को बढा़ देता है. "साकेत" में ’दशरथ जी’ का परिवार इसका उदाहरण है. गुप्त जी ने अपनी रचनाओं द्वारा उपेक्षित और शोषित नारी की दशा को भी उजागर किया है. गुप्त जी की रचनाओं से पता चलता है की वह शोषण मुक्त समाज के पक्षधर हैं. उन्हें वही राम राज्य पसंद है जहाँ एक राजा अपनी प्रजा के सुख-कल्याण के लिये अपने सभी सुखों का त्याग आसानी से कर देता है. उनके लेखन शैली बहुत ही अनूठी है. उन्होंने खड़ी बोली को इतनी सरलता से प्रयोग किया है कि उसमें ब्रजभाषा की मिठास दिखती है. गुप्त जी की सबसे प्रौढ़ रचना में ’सिद्धराज’ का नाम आता है. इसके संवादों में जो नाटकीयता है वह अन्यत्र दुर्लभ है. गुप्त जी की रचनाओं में उनके समय की सभी शैलियों की झलक मिलती है.
अंत में यही कहेंगे कि गुप्त जी हिन्दी साहित्य का वो जगमगाता सितारा है जिसकी चमक सदियों तक भी फीकी नहीं होगी. जब-जब- हिन्दी साहित्य की चर्चा होगी तब-तब उनका नाम साहित्य में योगदान के लिये लिया जायेगा. वो हिन्दी साहितय की ऐसी विभूति हैं जिन्हें कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है.

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई गुप्तजी के साहित्यिक योगदानों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है,...........

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  2. मैथलीशरण गुप्त जी की जितनी भी रचनाएं हैं उसका कोई जोड़ नहीं है । स्मरणों को याद दिलाने के लिए धन्यवाद !

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