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रविवार, 2 अगस्त 2009

व्यापार जगत का महारथी

"कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" अर्थात कर्म करो और फल की इच्छा मत करो. यूँ तो हजारों लोग गीता के इस श्लोक क अर्थ जानते हैं लेकिन कुछ ही होते हैं जो इसे अपने जीवन में उतारते हैं. इन्हीं कुछ में से एक थे धीरुभाई अंबानी. एक ऐसा व्यक्तित्व जो आज किसी पहचान का मोहताज नहीं. एक ऐसा स्वप्नदर्शी जिसमें अपने सपनों को पूरा करने की लगन, हिम्मत और दूरदृष्टि थी.
धीरुभाई अंबानी का पूरा नाम धीरजलाल हीरालाल अंबानी था. लेकिन ज्यादातर लोग उन्हें धीरुभाई अंबानी के नाम से जानते हैं. अपने जीवनकाल के फर्श से अर्श तक के सफर में धीरुभाई ने कई रंग देखे जिसमें कठिनाइयाँ भी थी साथ ही मेहनत के बाद प्राप्त सफलता का स्वाद भी था. सफलता के इस सफर में उन्हें आलोचना का शिकार भी होना पड़ा. उन पर आरोप भी लगे कि उन्होंने सरकारी नीतियों को अपनी आवश्यकता के अनुसार चालाकी से बदला आदि-आदि. इन सब के बावजूद धीरुभाई अंबानी अपने मार्ग पर चलते रहे और सफलता के कई पायदान पार कर शिखर पर विराजित हुए.
धीरुभाई अंबानी आज भारतीयों के लिये एक आदर्श की तरह हैं. उनकी सफलता और चिथड़े से धनी बनने की कहानी लोगों को प्रेरित करती है. वो एक गुणी व्यवसायी होने के साथ-साथ प्रेरक कर्ता भी थे. उनके द्वारा कही गयी कई बातें मूल्यों की तरह याद रखी जाती हैं-----------मैं ना सुनने का आदि नहीं हूँ.मैं अपने दृष्टिकोण बदलता रहता हूँ. यह आप सब भी कर सकते हैं जब आप सपना देखेंगे.बड़ा सोचो, जल्दी सोचो, आगे की सोचो, विचार किसी की बपौती नहीं हैं.हमारे सपने हमेशा विशाल होने चाहिए. हमारी ख्वाइशें हमेशा ऊँची. हमारी प्रतिबद्धता हमेशा गहरी अगर आप दृढ़ता और पूर्णता से काम करेंगे तो कामयाबी आपके कदम चूमेगी.मुश्किलों में भी अपने लक्ष्यों को ढूँढिये और आपदाओं को अवसरों में तब्दील कीजिए.हारें ना, हिम्मत ही मेरा विश्वास है.युवाओं को उचित माहौल दीजिए- उन्हें प्रेरित कीजिए. उन्हे जो जरूरत है, उनकी मदद कीजिए. प्रत्येक युवा नें अनंत ऊर्जा का स्रोत है.
चलते चलते यही कहूँगी कि धीरुभाई अंबानी एक ऐसी शख्सियत थी जिसने सपनों को देखने की हिम्मत की और साथ ही उन्हें पूरा करने के लिये महान प्रयास भी किए. इसीलिए तो उनके द्वारा बोया गया कर्म का बीज आज इतना फल फूल रहा है. ऐसे कर्मयोगी को नमन करती हूँ.

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