"क्या लिखूं क्या छोडूं, सवाल कई उठते हैं, उस व्यक्तित्व के आगे मैं स्वयं को बौना पाती हूँ" लताजी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उनके बारे में लिखने-कहने से पहले यही लगता है कि क्या लिखें और क्या छोडें। वो शब्द ही नहीं मिलते जो उनके व्यक्तित्व की गरिमा और उनके होने के महत्त्व को जता सकें। 'सुर सम्राज्ञी' कहें, 'भारत कोकिला' कहें या फिर संगीत की आत्मा, सब कम ही लगता है. लेकिन मुझे इस बात पर गर्व है कि लता जी जैसा रत्न भारत में उत्पन्न हुआ है. लता जी को 'भारत रत्न' पुरूस्कार का मिलना इस पुरूस्कार के नाम को सत्य सिद्ध करता है. उनकी प्रतिभा के आगे उम्र ने भी अपने हथियार डाल दिए हैं. लता जी की उम्र का बढ़ना ऐसा लगता है जैसे कि उनके गायन क्षमता की बेल दिन-प्रतिदिन बढती ही जा रही है. और हम सब भी यही चाहते हैं कि यह अमरबेल कभी समाप्त न हो, इसी तरह पीढी दर पीढी बढती ही रहे-चलती ही रहे.
आगे पढिये मेरी कलम से हिन्दयुग्म पर आवाज में रविवार सुबह की कॉफी और कुछ दुर्लभ गीत
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