नटखट, चंचल, प्यारा चाँद
खेलता है लुका-छिपी
बदलता है चेहरे अपने
कभी गायब हो जाता
ले आता रात अमावस
करें हम जतन कितने
आज फिर है आया
बन पूर्णिमा का चाँद
खिलखिलाया है मेरे अँगने
स्वरचित
दीपाली 'दिशा'
खेलता है लुका-छिपी
बदलता है चेहरे अपने
कभी गायब हो जाता
ले आता रात अमावस
करें हम जतन कितने
आज फिर है आया
बन पूर्णिमा का चाँद
खिलखिलाया है मेरे अँगने
स्वरचित
दीपाली 'दिशा'
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