काश ये नांदा समझ पाते इन इशारों को
हमने गिरते देखा है कितनी ही बुलंद मीनारों को
आज जो जर्रा है कल फलक पर पहुँच सकता है
आसमान पर चमकते चाँद को भी ग्रहण लग सकता है
वक्त का ऊँट कहो कब इक करवट बैठा है
बिन पेंदी का लोटा है कहीं भी लुढ़क सकता है
समझो इन हवाओं के रुख को ए नासमझो
घमंड से भरा ये सर कभी भी कट सकता है
हमने गिरते देखा है कितनी ही बुलंद मीनारों को
आज जो जर्रा है कल फलक पर पहुँच सकता है
आसमान पर चमकते चाँद को भी ग्रहण लग सकता है
वक्त का ऊँट कहो कब इक करवट बैठा है
बिन पेंदी का लोटा है कहीं भी लुढ़क सकता है
समझो इन हवाओं के रुख को ए नासमझो
घमंड से भरा ये सर कभी भी कट सकता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें