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शनिवार, 26 जनवरी 2013

गणतंत्र है इक ताश का पत्‍ता


तंत्र मंत्र के चक्‍कर से
अभी तक हम न निकल पाए
देखो हमारे मदारी नेता
घूमते हैं गणतंत्र का झुनझुना बजाए
जो स्वयं न समझ पाए कभी
इस तंत्र का सही मतलब
वही आज सरेआम फिरते हैं
वतन परस्ती का तमगा लगाए
तो सोच लो ए आम जनता
ये गणतंत्र है इक ताश का पत्‍ता
नेता बनकर बैठा जुआरी
इस देश की बाज़ी लगाए

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