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बुधवार, 24 जून 2009

प्यासी धरती करे पुकार

प्यासी धरती करे पुकार
सुन लो हे जग के करतार
सूख गयी है मेरी कोख़
तन पे ना गिरी जरा भी ओस
कौन बुझाये मेरी प्यास
प्यासी धरती करे पुकार
कुआँ , पोखर और तालाब
जोहते हैं बारिश की बाट
कहीं नहीं पानी की बूँदे
बाँध और नदिया तट सूने
कुछ तो करो विचार
प्यासी धरती करे पुकार
किसान करते हैं करुण क्रंदन
कहाँ से उपजेगा अब अन्न
सूनी आँखे, सूखे होठ
कहीं न छाया कहीं न ओट
पडी़ सीने में मेरे दरा़र
प्यासी धरती करे पुकार

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